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ॐ
परमात्मने नमः
वस्तुविज्ञानसार
प्रकरण 1
सर्वज्ञ के निर्णय में अनन्त पुरुषार्थ
[ कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा 321-22-23 पर प्रवचन ]
(वीर सम्वत् 2471 मार्गशीर्ष शुक्ला 12 )
वस्तु की पर्याय क्रमबद्ध ही होती है, तथापि सर्वज्ञ का निर्णय करनेवाले को ही इसका यथार्थ निर्णय होता है और सर्वज्ञ का निर्णय करनेवाले को ज्ञानस्वभाव की सन्मुखता से निर्मल पर्यायें होती हैं; इसके बिना न तो क्रमबद्धपर्याय का निर्णय होता है और न शुद्धपर्याय ही होती है। इस प्रकार इसमें सम्यक् पुरुषार्थ है । इस महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त को समझाने के लिए यह प्रवचन है । इस प्रवचन में निम्नलिखित 20 विषयों का स्पष्टीकरण आ जाता है -
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