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________________ अज्ञानी को व्यवहार का सूक्ष्म... 99 भी जीव को सम्यग्दर्शन क्यों नहीं हुआ? त्रैकालिक और वर्तमान इन दोनों को लक्ष्य में तो लिया किन्तु त्रैकालिक स्वभाव की ओर झुका नहीं; अतः सम्यक्त्व नहीं हुआ। त्रैकालिक स्वभाव की ओर उन्मुख होनेवाला प्रथम दोनों का विचार करके स्वभावसन्मुख होता है। जो स्वभाव की दृढ़ता प्राप्त कर लेता है, वह व्यवहार को फीका कर देता है। यद्यपि अभी व्यवहार का सर्वथा अभाव नहीं हुआ, किन्तु जैसे-जैसे स्वभाव की ओर ढलता जाता है, वैसे-वैसे व्यवहार का अभाव होता जाता है। ___ वस्तु को मात्र धारणा में लेने से ही सम्यग्दर्शन नहीं हो जाता, किन्तु ज्ञान को स्वभाव की ओर ले जाने की आवश्यकता है। यहाँ ज्ञान और श्रद्धा दोनों के बल को स्वभावसन्मुख करने की बात है। शुभराग से मेरा स्वभाव भिन्न है, इस प्रकार का जो ज्ञान है, उस ओर वीर्य को ढालते ही तत्काल सम्यग्दर्शन हो जाता है। यदि स्वभाव की रुचि करे तो वीर्य भी स्वभाव की ओर ढले, किन्तु जिसके राग की पुष्टि और रुचिभाव है, उसका व्यवहार की ओर का झुकाव दूर नहीं होता। जहाँ तक मान्यता और रुचि के वीर्य में निरपेक्षस्वभाव नहीं रुचता और राग रुचता है, वहाँ तक मिथ्यात्व है। ___ जीव अशुभभाव को दूर करके शुभभाव तो करता है; परन्तु वह शुभभाव में धर्म मानता है, यह स्थूल मिथ्यात्व है। जीव अशुभभाव को दूर करके शुभभाव करता है और शास्त्रादि के ज्ञान से यह भी समझता है कि शुभराग से धर्म नहीं होता, तथापि चैतन्यस्वभाव की ओर का वीर्य न होने से उसके मिथ्यात्व रह जाता है। चैतन्यस्वभाव की ओर के बल से वर्तमान की ओर से हटना ही दर्शनविशुद्धि है।
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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