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निश्चय
२३. यह जीव शुद्ध निश्चय नय से अपने स्वरूप को नहीं
छोड़ता है।
२४. निश्चयरूप से जीव कर्म और नो कर्मों का कर्ता नहीं है
ऐसा समझकर जो पुरुष अपने स्वसंवेदन (समाधिरूप) ज्ञान से जो अपने शुद्धात्मा को जानता है वही ज्ञानी होता है । निश्चय से यह जीव पुण्य
पापादिपरिणामों काकर्ता नहीं है। २५. निश्चय से इस जीव का कर्ता कर्म भाव और भोक्ता
योग्य भाव भी अपने परिणामों के साथ ही है। २६. आत्मा कर्म और नो कर्म के परिणाम का उत्पादन कर्ता
नहीं हैं, इस प्रकार वह निश्चय शुद्ध आत्मा का परम समाधि क द्वारा अनुभव करता हुआ ज्ञानी होता है। निश्चय नय से आत्मा पुण्य पापादि परिणामों का
कर्ता नहीं है। २७. निश्चय से पर द्रव्य की अवस्था रूपनपरिणमन करता
है, न उसको ग्रहण करता है न उर रूप में उत्पन्न ही होता है। इसलिए ये निश्चय से उसके साथ कर्ता कर्म
भाव नहीं है। २८. जो अज्ञान, अविरति, मिथ्यात्व उपयोगात्मक है वे
जीव है। २९. निश्चय नय अभिन्न-तादात्म्य संबंध या उपादान
उपेय भाव को ही ग्रहण करता है। उसकी दृष्टि संयोग
संबंध पर नहीं होती। ३०. आत्मा निश्चय नय से तो अपने भावों का ही कर्ता