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व्यवहार सम्यक चारित्र कहलाता है। यह व्यवहार मोक्षमार्ग है।
व्यवहार रत्नत्रय कारण रूपहोता है। ५८. आगम शैली कहती है कि व्यवहार में प्रवृत्ति किये बिना
निश्चय को प्राप्त नहीं किया जा सकता अतः विद्धान लोग व्यवहार मोक्ष मार्ग को- त्याग भाव को स्वीकार करके उससे निश्चय मोक्ष मार्ग परम समाधि को प्राप्त
कर लेते हैं। ५९. व्यवहार नय से कर्म पुण्य और पापरूपदो प्रकार का है।
६०. द्वादशांग के विषय में जो ज्ञान है वह व्यवहार नय से
इतर जीवादि बाह्य समस्त पदार्थों का श्रुत के द्वारा
ज्ञान हो जाना है। ६१. भक्ति नाम सम्यकत्त्व का है जो व्यवहार से तो पंच
परमेष्ठी की समाराधना रूप होती है वह सराग
सम्यग्दृष्टि जीवों के हुआ करती है। ६२. व्यवहार नय परावलम्बी है, बाह्य अन्य पदार्थों के
आश्रय पर टिकता है, व्यवहार नय जो कि मुख्यतया
गृहस्थों के द्वारा अपनाने योग्य है। ६३. सविकल्परूपव्यवहार नय है। ६४. आचारांग आदि शास्त्र का पढ़ना ज्ञान है, जीवादि ९
तत्त्वों का मानना दर्शन है और छह काय के जीवों की रक्षा करना सो चरित्र है ऐसा व्यवहार नय कहता है। इस प्रकार यह मोक्षमार्ग का स्वरूपहुआ और व्यवहार
मोक्षमार्ग(निश्चयमोक्षमार्ग से) प्रतिषेध्य है। ६५. मोक्ष का मार्ग अर्थात त्याग करने का उपाय-जीवादि
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