SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/९४ शान्ति-पाठ (दोहा) मुक्ति-मार्ग पाऊँ प्रभो, करूँ आत्म-कल्याण । निज स्वभाव की शक्ति पा, करूँ कर्म अवसान ॥ नहीं कहीं कोई दुखी, हे प्रभु हो लव-लेश। द्रव्यदृष्टि से सभी का, है सिद्धों सम वेश ॥ सकल जगत में शान्ति हो, सुख का हो साम्राज्य । सब जीवों को प्राप्त हो, उनका शिवसुख राज्य ॥ परम शान्ति इच्छुक प्रभो, करता तुम्हें प्रणाम। महा-शान्ति दो हे प्रभो, पाएँ सब ध्रुवधाम ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्। (यहाँ नौ बार णमोकार मंत्र का जाप करें) क्षमापना (छद - सोरठा) आप क्षमा भण्डार, क्षमा करो अपराध सब। यह विधान सम्पूर्ण, आप कृपा से हो गया॥ मैं अज्ञानी नाथ, भूल-चूक कर दो क्षमा। मुझको करो सनाथ, मैं अनाथ हूँ हे प्रभो॥ आप कृपा से नाथ, कर्म दहन कर दूं सभी। हो जाऊँ निष्कर्म, निज पुरुषार्थ स्वशक्ति से॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्। जाप्यमंत्र - ॐ ह्रीं अष्टकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy