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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/५४
पूर्ण मोक्षफल प्राप्ति हित, पाऊँ सम्यग्ज्ञान। . बाधक कारण मोक्ष के, शीघ्र करूँ अवसान ॥ नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध।
अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध ॥ ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं नि.।
पद अनर्घ्य की प्राप्ति हित, लूँ निश्चय भूतार्थ। निज गुण अर्घ्य सजा प्रभो, पाऊँ निज परमार्थ ॥ नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध।
अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध । ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.।
अर्ध्यावलि
__ (दोहा) नामकर्म की प्रकृतियाँ, तेरानवे प्रसिद्ध। .. कोई भी होता नहीं, इनके क्षय बिन सिद्ध ॥
(छंद - ताटंक) नामकर्म की चार प्रकृतियाँ गति नामक भवदुख दायक। पहली प्रकृति नरक गति नायूँ निज पद पाऊँ सुखदायक॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल ।
निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥१॥ ॐ ह्रीं नरकगतिनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। द्वितीय प्रकृति तिर्यश्च विनायूँ जो है भवदुखदायी शूल ।
वध बंधन छेदन-भेदन की बहु पीड़ा का दुखमय मूल ॥ . नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल ।
निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥२॥ ॐ ह्रीं तिर्यञ्चगतिनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्टिभ्यो अर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.