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________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/३७ अक्षय पद दाता शुद्ध, निज अक्षत लाऊँ। शुभ-अशुभ विकारी भाव, पर मैं जय पाऊँ। कर मोहनीय का नाश, समकित गुण पाऊँ। क्षय अट्ठाईस प्रकृति, करूँ निज सुख पाऊँ। ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि. । मैं काम-विनाशक पुष्प, चिन्मय के लाऊँ। शुभ-अशुभ विकारी भाव, पर मैं जय पाऊँ॥ कर मोहनीय का नाश, समकित गुण पाऊँ। क्षय अट्ठाईस प्रकृति, करूँ निज सुख पाऊँ॥. ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.। मैं क्षुधारोग-क्षय हेतु, शुद्ध सुचरु लाऊँ। शुभ-अशुभ विकारी भाव, पर मैं जय पाऊँ। कर मोहनीय का नाश, समकित गुण पाऊँ। क्षय अट्ठाईस प्रकृति, करूँ निज सुख पाऊँ॥ .. ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्य। क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.। मैं मोह तिमिर हर दीप, ज्ञान का ही लाऊँ। शुभ-अशुभ विकारी भाव, पर मैं जय पाऊँ॥ कर मोहनीय का नाश, समकित गुण पाऊँ। क्षय अट्ठाईस प्रकृति, करूँ निज सुख पाऊँ॥ ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि. । मैं अष्टकर्म क्षय को, ध्यान अपना ध्याऊँ। शुभ-अशुभ विकारी भाव, पर मैं जय पाऊँ। कर मोहनीय का नाश, समकित गुण पाऊँ। क्षय अट्ठाईस प्रकृति, करूँ निज सुख पाऊँ॥ । ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अष्कर्मविध्वंसनाय धूपं नि.।।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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