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________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/२६ संसार ताप क्षय करने को मैं आया। उत्तम मलयागिरि चंदन शीतल लाया॥ अरहंत देव दर्शन अनंत गुणधारी। नौ प्रकृति दर्शनावरणी के क्षयकारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो संसारतापविनाशनाय | चंदनं नि.। अक्षय पद पाने का विवेक उर भाया। मैंशालिअखण्डितउज्ज्वलचिन्मयलाया॥ अरहंत देव दर्शन अनंत गुणधारी। नौ प्रकृति दर्शनावरणी के क्षयकारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि। मैं कामबाण नाशक गुण पुष्प सजाऊँ। मैं महाशील गुण ज्ञान स्वभावी लाऊँ॥ अरहंत देव दर्शन अनंत गुणधारी। नौ प्रकृति दर्शनावरणी के क्षयकारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.। चिर क्षुधा रोग विध्वंस करूँ चरु लाऊँ। पद शीघ्र अनाहारी अपना प्रकटाऊँ॥ अरहंत देव दर्शन अनंत गुणधारी। नौ प्रकृति दर्शनावरणी के क्षयकारी॥ ॐह्रीं दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.। ध्रुव ज्ञान दीप केवल प्रकाशमय लाऊँ। मोहान्धकार क्षय करके निज पद पाऊँ॥
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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