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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/१९
पूजन क्र.३ ज्ञानावरणीकर्म विरहित श्री सिद्धपरमेष्ठी पूजन
स्थापना
(दोहा) ज्ञानावरणी कर्म के, नाशक श्री अरहंत । केवलज्ञान महान के, धारक श्री भगवंत ॥ ज्ञानावरण विनाश कर, पाऊँ केवलज्ञान ।
विनयसहित पूजन करूँ, करूँ आत्मकल्याण॥ ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र मम संनिहितो भव भव वषट्।
(सार-जोगीरासा) जन्म-जरा-मृतु क्षय करने को नाथ शरण में आया। ज्ञान अनंतानंत प्राप्ति का दृढ़ निश्चय उर भाया। ज्ञानावरणी कर्म विनाशक सिद्ध प्रभु को वन्दन ।
पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता ज्ञानसूर्य अभिनन्दन ।। ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वामीति स्वाहा।
भवाताप ज्वर की पीड़ा से कष्ट अनंत उठाया। भवज्वरनाशक शीतल चंदन भावमयी मैं लाया॥