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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/९
अजर-अमर अविकल अविकारी अविनाशी अनन्त गुणधाम। नित्य निरंजन भवदुःख भंजन ज्ञानस्वभावी सिद्ध प्रणाम । ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिने संसारतापविनाशनाय चंदनं नि.। उलझा हूँ संसारचक्र में कैसे हो इससे उद्धार । अक्षय तंदुल रत्नत्रय दो मैं हो जाऊँ भवसागर पार ॥ अजर अमर अविकल अविकारी अनन्त गुणधाम । नित्य निरंजन भवदुःख भंजन ज्ञानस्वभावी सिद्ध प्रणाम॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिने अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.।
कामव्यथा से घायल हूँ मैं कैसे करूँ काममद नाश। विमल दृष्टि दो ज्ञानपुष्प दो कामभाव हो पूर्ण विनाश ॥ अजर अमर अविकल अविकारी अविनाशी अनन्त गुणधाम।
नित्य निरंजन भवदुःख भंजन ज्ञानस्वभावी सिद्ध प्रणाम ॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिने कामबाणविनाशनाय पुष्पं नि.।
क्षुधारोग के कारण मेरा तृप्त नहीं हो पाया मन । शुद्ध भाव नैवैद्य मुझे दो सफल करूँ प्रभु यह जीवन ॥ अजर अमर अविकल अविकारी अविनाशी अनन्त गुणधाम। नित्य निरंजन भवदुःख भंजन ज्ञानस्वभावी सिद्ध प्रणाम। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिने क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.।
मोहरूप मिथ्यात्व महातम अन्तर में छाया घनघोर । ज्ञानदीप प्रज्वलित करो प्रभु प्रकटे समकित रवि का भोर ॥ अजर अमर अविकल अविकारी अविनाशी अनन्त गुणधाम। नित्य निरंजन भवदुःख भंजन ज्ञानस्वभावी सिद्ध प्रणाम ॥ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिने मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि.।
कर्म शत्रु निज सुख के घाता इनको कैसे नष्ट करूँ। है शुद्ध धूप दो ध्यान अग्नि में इन्हें जला भव कष्ट हरूँ॥ ।