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साधना पथ “बीस दोहे" भावपूर्वक बोले जाएँ तो सब दोष क्षय होकर आत्मा निर्मल बन सकती है। ज्ञानीपुरुष के वचन, मुँह से बोले जाएँ पर विचार न आएँ तो किस काम के? जैसे,. "हे भगवान, मैं बहुत भूल गया।" क्या भूल गया? यह विचार आएँ तो ज्ञानीपुरुषों को आगे क्या बताना हैं, उसका लक्ष हो। फिर तुरन्त ही यह बताया है कि "मैंने आपके अमूल्य वचनों को लक्ष्य में नहीं लिया।"
ज्ञानीपुरुष के वचनों का परिणमन इस जीव को यदि नहीं हो रहा है तो उसका विशेष कारण 'लोभ' है। जीव को यदि यह हृदय में बैठ जायें कि मुझे अब लोभ नहीं करना परन्तु आत्म-कल्याण करना है, तो उसे बहुत सारे विकल्प कम हो जाएगें और ज्ञानीपुरुष के वचन अंतर परिणामी बन जाएगें। इस बात का लक्ष होना चाहिए।
जीव यदि पुरुषार्थ करे तो घाती कर्मों का जोर न चलें और वे मुर्दा जैसे हो जाएँ। अपने दोष निकालने का लक्ष्य, खास होना चाहिए। कोई गुण प्रकट हो, तो उसका अभिमान नहीं करना, वैसा करने से पीछे रह जाते हैं। ज्ञानी पुरुष के उपदेश में ऐसा चमत्कार होता है कि जिन जीवों ने उनका आश्रय स्वीकार किया है, बहुमान से उनके वचनों का जो निरंतर चिन्तन-मनन करते हैं, उन जीवों के वे दोष उत्पन्न नहीं होते।
(५) बो.भा.-१ : पृ.-२१ . _ 'स्मरण' अद्भुत वस्तु है। स्वरूप प्राप्ति कराने तथा स्वरूप में स्थिरता करानेवाला है। सारा दिन उसका रटण करने में आए तो भी नित्य नियम की माला गिनना नहीं छोड़ना। जिसको अमूल्य समय की क्षण भी जाने न देनी हो, उसके लिए ‘स्मरण' अपूर्व वस्तु है। कुएँ में पड़े हुए डूबते मनुष्य के हाथ में रस्सी आए तो वह डूबे नहीं। वैसे ही ‘स्मरण' संसार समुद्र में से बचानेवाली वस्तु है।