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________________ साधना पथ किन्तु संसार प्रसंग की अनुकूलता हो तो वैराग्य आना मुश्किल है। संसार में सुख नहीं, संसार में रहने जैसा नहीं। संसार के सुख और दुःख, कर्म के फल हैं। अतः दोनों बराबर है, मोक्षमार्ग को रोकनेवाले हैं। मुझे क्या हितकारी है, यह बात का जीव को भान नहीं। ज्ञानी ने तो आत्मा के सुख को सुख कहा है। श्री.रा.प.-४५४ (१२१) बो.भा.-२ : पृ.-१३२ ज्ञानी मिले, वचन सुने, नमस्कार किया, दर्शन किया तो उस का फल तो होना चाहिए? संसार में ही प्रीति है तो ज्ञानी को देखा ही नहीं। संसार जहर सम लगे, सत्पुरुष का कथन ही कर्तव्यरूप लगे, तभी ज्ञानी को पहचाना कहलाएँ। ज्ञानी के वचन सुने तो बदल जाएँ। सुन कर संसार पर अभाव न हो तो ज्ञानी के वचन सुने ही नहीं। ज्ञानी को ज्ञानी के रूप में न पहचाने तो दर्शन किया ही नहीं, ऐसा कहा जाए। ज्ञानी आत्मा है यों जाने, माने तो कल्याण हो। ज्ञानी के वचन सुनने पर भी अभी संसार में ही वृत्ति है। ज्ञानी के वचन सुन कर जीव की वृत्ति न बदले तो या तो कहने वाला ज्ञानी नहीं, अथवा सुनने वाले में योग्यता नहीं। ज्ञानी को दृष्टि बदलवानी है, आत्मदृष्टि करानी है। आत्मार्थी को भव में खेद होता है। भव से थकान लगे। संसार की रुचि कम हो और ज्ञानी के वचनों के प्रति प्रीति हो ऐसा अवश्य करना चाहिए। जिसे कुछ करना है, ज्ञानी उसी को कुछ कहते हैं। ज्ञानी का योग होने पर भी जीव को गुण प्रगट न हों, संसार की ही प्रीति हो, तो योग हुआ न हुआ, समान है। जिसमें से संसार बीज जल गया है, ऐसे सत्पुरुष के वचन सुन कर भाव न बदलें तो मानो योग ही नहीं हुआ। भ्रमर विष्टा की गोली मुँह में रख कर फिरे तो बाग की सुगंध आएँ? वैसे ही संसारी, वासना रख कर सत्पुरुष के पास जो सुना हैं उसे अपनी मति अनुसार मानता है। ऐसा यदि होता है तो जीवने सत्पुरुषको देखा ही नहीं। चारों गति में कहीं भी सुख नहीं। जिस मार्ग से ज्ञानी सुखी हुए वही मार्ग लेना है। ज्ञानी के वचनों की जिसे इच्छा है, वह दूसरी इच्छाएँ नहीं करता।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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