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भारत पश्चिम का अनुकरण क्यों न करें : .
भारत के लोगों को हमारा संदेश है कि : कृपया अपनी धार्मिक शाकाहारी परंपरा को बनाये रखें. यह हमारी समिष प्रवृत्ति से कई गुना बडी है, ब्रिटेन मै भी निश्चित रूप से, यह जानते हुए कि मानव-जाति के लिए शाकाहारवाद ही सही एवं स्वास्थ्यप्रद है, एक मिलियन से भी ज्यादा लोग इसी निष्कर्ष पर पहुंचे है. मांसाहारी भोजन की तुलना में हम शाकाहारी भोजन से दस गुना अधिक लोगों को खिला सकते हैं; संतुलित शाकाहारी भोजन से हम ज्यादा स्वस्थ रह सकते हैं और, इतना ही महत्वपूर्ण है, कि मांसाहार से दूर रहकर ही हम कसाईखानों की भयावहता से मुक्ति पा सकते हैं। प्रति वर्ष ब्रिटेन के कसाईखानों में करोडों बेवर्श जानवरों को झोंका जाता है तथा दुर्गंधभरी एवं रक्तरंजित इमारतों में अमानवीय व्यवहार से उनका कतल किया जाता है ताकि ऐसे खाद्यपदार्थ बनाये जा सकें जिनकी हमें जरूरत नहीं है। इसके विपरीत अधिकांश डाक्टरों का कहना है कि हृद-रोग जैसी घातक बीमारी का कारण ज्यादा मात्रा में मांसभक्षण करना भी है। अफसोस के साथ हमें यह पता चला है कि भारत वर्ष अब हमारी फैक्ट्री फार्मिंग पद्धतियों का अनुकरण कर रहा है. हम नैराश्य के साथ यह पढ़ते हैं कि हमारी देश की तरह ही फैक्ट्री फार्मों में करोड़ों की संख्या में चूजे पाले जाते हैं. मानवमात्र एवं पशुओं के लिए निम्नस्तरीय होने के साथ ही साथ, इस प्रकार की पद्धतियों, जैसा कि स्वयं भारतीय मुर्गीपालन उद्योग ने भी कबूल किया है, का कपोषण पर कोई असर नहीं हो पाया है। और यह हो भी कैसे सकता है कि जब एक गरीब व्यक्ति इस प्रकार की ऐशो आराम की चीजें खरीदने भी समर्थ्य ही नहीं रखता है? पाश्चाश्य जीवन के कई पहलू हैं जिन्हें आप प्रशंसापूर्वक अपनाना चाहेंगे लेकिन मांसभक्षण न प्रशंसनीय है और न ही आवश्यक.
फैक्ट्री फार्मों में कैद जानवरों, जहां न वे हिलडुल सकते हैं और न ही खुली हवा में सांस ले पाते है, की कसाईखानों में निर्दय हत्या को देखकर हम पश्चिमवासियों का सिर शर्म से झुक जाता है, गर्व अनुभव करने भी हो बात ही नहीं उठती. हमारा अनुकरण कर के बजाय आप को चाहिए कि आप हम पश्चिम वासियों के लिए जानवरों व मनुष्य समुदाय के प्रति अहिंसा का रास्ता अपनाकर एक मानवीय और सुसंस्कृत उदाहरण रखें इसका एकमात्र उत्तर है शाकाहारवाद. शाकाहारवाद के बारे "जिओ और जीने दो" को याद रखें
मार्क गोल्ड द एनिमल एड सोसायटी, यु.के.