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प्रति
श्री नीतिन मेहता,
प्रमुख,
वाई. आई. वी.
३३, गोल्डवेल रोड,
थोर्नटन हीथ, सरे.
होंग कोंग दिनांक २२-९-१९८४
( आपका ) अगस्त का पत्र मिला. आप अपने सामायिक में भारतीय जनों को शाकाहारी रहने के लिए विशेष जानकारी देने वाले हैं. यह जानकर आनंद हुआ.
जिसको जीवन प्रदान नहीं कर सकते हैं, उसके प्राण लेने का हमें कोई अधिकार नहीं है. भगवान स्वामी नारायण ने कहा है कि किसी कारण किसी की हिंसा न करनी चाहिए. भगवान ने मनुष्य के भोजन के लिए बहुत चीजें बनाई हैं. मनुष्य वही है जो शाकाहारी है. सिंह मांसाहारी पशु है, वह कभी घास नहीं खाता. पशु भी आहार में विवेक रखते हैं; परन्तु मनुष्य नहीं रखता, इसलिए मनुष्य से कहना पड़ता है कि "तुम मनुष्य बनो
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शाकाहारी पशु तरकारी और सब्जी (भाजी) में से शक्ति पाते हैं. मनुष्य तो शाकाहारी पशु की हिंसा करके, उसमें से निम्न कक्षा की शक्ति पाता है. शाकाहार से ही उच्च कक्षा की शक्ति क्यों न पाये ? जीवित पशु की हिंसा करके, उसको खा करके अपने पेट को कब्रिस्तान बनाना, यह कैसी अजीब घटना है ? तथैव युद्ध का मूल मांसाहार ही है. भगवान स्वामीनारायण से प्रार्थना करते हैं कि विश्व में शाकाहार का प्रवर्तन हो, जिससे मनुष्यों का मन पवित्र बने एवं युद्ध न हो और मानव भी सब तरह से शांति प्राप्त करें !
भवदीय,
शा. नारायण स्वरूपदास के
अत्याधिक स्नेह पूर्वक जय श्री स्वामी नारायण.
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