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________________ E. Leumann, An outline of the Avaśyaka literature [ खंड २ २,३३(१५८.). जैन साहित्य सशाधक [ नीलविज्ञान में उत्पन्नमासात् ] सर खायो-सर्वदर्शनसंग्रा प. १९,७-१० (एक एव हि भूतात्मा भूते भूते प्रतिष्ठितः । एकथा यहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत् ।। -प्रबिन्दु-उपनिषत् १२. यशस्तिलक चम्पू, आभास ६, कल्प १. (पृ.२७॥ निर्णयसागर ) यथाविशद्धमाकाशं तिमिरोपप्लुतो जनः । सस्कोर्णमिव मात्राभिभिन्नाभिरभिमन्यते ।। तथेदममलं ब्रह्म निर्विकल्पमविद्यया । कलुषत्वमिवापन्नं भेदरूपं प्रकाशते । "ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥" -भगवद्गीता १५-१; ( महाभारत ६-१३८३.) पुरुष एवेदं निं : सर्व यद् भूतं यच्च भाव्यं ।" उतामृतत्वस्येशानो यदन्ननातिरोहति ॥ -वाजसनेयी सहिता ३१, २. श्वेताश्वतरोपनिषद् -१५... अकर्ता निर्गुणो भोक्ता आत्मा सांख्यनिदर्शने । स्याद्वादमारी, लोक १५ मा मल्लिषेण आखो श्लोक आ प्रमाणे आपे छ: अमूर्तश्चेतनो भोगी नित्यः सर्वगतोऽत्रियः। अकर्ता निर्मुणः सूक्ष्म आत्मा कापिलदर्शने ॥ (बनारस, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, पृ. १११ षड्दर्शनसमुच्चयनी टीकामा गुणरत्न पण आ श्लोक उध्दत करे छे. (जुओ कलकत्ता आवृत्ति, पृ.१०५)। बळी सरसावो-पदर्शनसमुच्चय, मूळ श्लोक ४१. १. ब्रह्मविन्दूपनिषद् ( आनन्दाश्रम मुद्रित, पृ. ३३८) मां बांजो पाद भूते भूते व्यवस्थितः' आ प्रमाणे छे, अने यशस्तिलक चम्मू ( निर्णयसागर-मुद्रित, पृ. २७३-उत्तर भाग ) मां बीजा अने प्रीजा पादनो पाठ-दहे। देहे व्यवस्थितः । एकथानेकधा चापि आ प्रमाणे छे. वळी, शीलांकाचार्यनी आचारोगसून टीका (भागमदिर मामिति मुद्रित, पृ.१८) अने सूत्रकृतांग सूत्र टीका ( आ. स. मु.पृ.१९) मा पण आ श्लाक उध्दृत छे. ११. उपनिषद्मा ' भव्यं' पाठ उपलब्ध थाय छे. प्रो. स्यूमन आ शब्द उपर एक नांचे प्रमाणेनी खास नोंध करे छ: “केटलाक प्रसिद्ध उपनिषदोमायी बन विद्वानोए लीधेला आ अवतरणो सेकाओ मुधी बहु ध्यान संचाया. वगर ज लखाता आवतो हा अने। थी जैनोए करेली तेमनी नोंघा स्वभाविकराते ज केटलीक भलो थएली छे. उदाहरण तरा २१ मार्नु नि तथा ७२र्नु अवतरण."-आमांना प्रथम निं शब्द ऊपरनी नोटमा ते लखे छ के-" वर्तमानमा वैदिक वाध्ययना हस्तलिखित प्रन्योमा अनुस्वार माटे जे चिन्ह वपराय छे, ते ८ मा सैका अगर तना ५ निं अक्षर जे दखातुं हशे अने तेयी वैदिक चिन्हयी अजाण एवा जैन प्रन्यकारोए तेने एक खास शब्द मानी लावला छ. अने तेथी तेमणे 'पुरुष एवेदं सर्व'ए असल वाक्यमा मिं शब्द वधारी 'द'ना 'द उपर बीजो अनुस्वार । दीयो होय एम जणाय छ." प्रो. ल्युमननी मा नोंध अमने जरा विचारणीय लागे छे. लिपिमेदना ज्ञानना मना एवी भूलो यवी जोके घणी संभक्ति मात्र ज नथी पण मुज्ञात छे. दाखला तरीके जैन लिपिमा ग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006911
Book TitleOutline of Avasyaka Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorErnst Leumann, George Baumann
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages256
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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