________________
51
आसीसा जहा :
आसीसा संतत्तस्स - वि सअल - कलुसाइ तुम्ह णासंतु । दिअ - गुरु-तवसि - कुआरिं-सिअअण-सुअणेहिं दिण्णा उ ॥११७॥
उवमारूवअमेअं, विज्जइ जत्थ रुवए उवमा । णिअरिसणं हु-वि सिद्धं चंडाविअजओवमारहिआ (?) ॥११८॥
उवमारूवअं जहा :
संपेसिअ - णअण-सरा, रसणा-रव- तरल- मिलिअ - घर - हंस । खलिअ - जुआणा णिसर, मम्मइ - धाडि - व्व धवलच्छि ॥११९॥
अरिसणं जहा :
दावंति जलहरा सअल - दंसण-वहं समारूढा । खण-विहडंत-खण-समुण्णइ - धरआ काल-कीलाउ ॥१२०॥
होइ सिलेसा-छलेणं, मज्जंती- रूअण अ- फुडेणं । उप्पेक्खा एसो सुओ उप्पेक्खावअव - णामो हु ॥१२१॥
उप्पेक्खाव अवो जहा :
सम-विअसण-संपुण्णं वणं नु कुसुमाण रअणि-विरमंमि । उज्जोवइ हअ(?)चंडो जोइक्खेण व (?) पइट्ठो ॥१२२॥
सो उब्भेओ वत्थूण जत्थ वत्थूहि होइ उब्भेओ । भणिओ किं-पअ - गब्भो, बिइओ तह णूण- सद्देण ॥ १२३ ॥
उभेओ किं-पअ - गब्भों जहा :
आली णिअच्छण-सलोनीअं हलिअस्स अमुणिअ- रसस्स । निव्वासिअ - सिर- चीरमुछुण्णं मुहं विअड्डेणं ॥ १२४॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org