SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अण्ण-परिअरो जहा : तुरियाए तुरिय-गमणो , णिअम्ब-भर-मंथराए सलील-पओ। मग्गेण तीअ वच्चइ , पेलावेलाए तरुणि-जणो ॥८५॥ बहु-वत्थु च्चिअ किरिया(?) सम-काल-पआसनं उ सहउत्ति । गुरु-वीरआए रइओ , जाअइ उज्जा-अलंकारो ॥८६॥ [उज्जा जहा :] वीसत्थो च्चिअ गेण्हसु वइरिअणे वेग्ग-(?)विडिअं खग्गं । पहरते पडि-पहरणमुणा करेसु ण सामत्थं(?) ॥८७॥ सहोत्ति जहा : णिद्दाए समा लज्जा , सरीर-सोहाए सह गआ कित्ति । समअंतह अणुर तीए वटुंति णीसासा ॥८८॥ उवमा जत्थ णिण्हवइ थडा सा अवण्हुई होइ। पीईए अ अइसएणं , पेमाइसओ भणेअव्वो ॥८९॥ अवण्हुई जहा : णहु उच्च-विडव-संठिअ-पहिट्ठ-कलअंढि-कल-रव-प्पसरो। सुव्वइ वण-विलसिर-पुष्फचाव-महुरो रवो एसो ॥१०॥ पेमाइसओ जहा : सहसा तुअम्मि दिढे , जो जाओ तीअ पहरिसाइसओ। सो जइ पुणो-वि होसइ , सुंदर तुअ दंसणे च्चेअ ॥११॥ रिद्धि-महाणुभावत्तणेहि दुविहो-वि जाअइ उदत्तो । स परिउत्तो घेप्पइ , जत्थ विसिटुं णिअंदाउं ॥१२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006906
Book TitleAlamkaradappana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages64
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy