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________________ 43 रोहो जहा : को ण वलइ तेण विणा मा भणसु अ पुलइएहिं पासेहिं । अइ-रहस-जंपिआई हवंति पच्छा अवच्छाई ॥५१॥ पआणुजासो जहा : ससि-मुहि मुहस्स लच्छि थणसालिणि थणहरं-पि पेच्छंतो। तणुआअइं तणुओअरि हलि[अ]सुओ कहसु जं जुत्तं ॥५२॥ वण्णाणुप्पासो जहा : वाअंति सजल-जलहर-लव-संवलन-सीअल-प्फंसा। फुल्लंधुअ-धुव-कुसुमुच्छलंत-गंधुद्धरा पवण ॥५३।। जत्थ निमित्ताहिंतो लोआ एकंत-गोअरं वअणं । विरइज्जइ सो तस्स अ अइसअ-णामो अलंकारो ॥५४॥ . अइसआलंकारों जहा : जइ गंध-मिलिअ-भमरं न होइ अवअंस-चंपअ-पसूअं। ता केण विभाविज्जइ कओल-मिलिअं पहं तिस्सा ॥५५॥ विगए वि एक्क-देस-गुणंतरेणं तु संथुई जत्थ । कोरइ विसेस-पयडण-कज्जेणं सा विसेसो त्ति ॥५६।। विसेसालंकारो जहा : न-वि तह णिसासु सोहइ पिआण तंबोल-राअ-पच्छइओ। जह पिअअम-पिओ पंडरो-वि अहरो पहायम्मि ॥५७॥ जत्थ निसेहो व्व ससीहिअ(?) कोरइ विसेस-तण्हाए। सो अक्खेवो दुविहो होंत-विकंत-भेएण ॥५८॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006906
Book TitleAlamkaradappana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages64
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size4 MB
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