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36. वीतरागी श्रमण भगवान महावीर को साष्टांग प्रणाम ।
(i)
हाथियों में ऐरावत, जन्तुजाल में सिंह, नदियों में गंगा, पक्षियों में वासुदेव गरुड़, सन्यासियों में महावीर, उन्हें प्रणाम।
(ii) शब्दों में अशनि,
तारों में चन्द्रमा, परिमलों में चन्दन गन्ध सन्यासियों में महावीर, उन्हें प्रणाम।
(iii) स्वामी ! आपके दर्शन महा भाग्य है !
आपको न देखनेवाली आँखें क्या आँखें है ? आपकी पूजना न करनेवाले हाथ क्या हाथ हैं ? आपके चरणों में नतमस्तक न होनेवाला मस्तक क्या मस्तक है ? श्रमण भगवान महावीर स्वामी । आप को प्रणाम !
36 OBEISANCE AND PROSTRATIONS TO SHRAMANA
BHAGAWAN MAHAVIRA, THE KING OF RENUNCIATION
(i)
Thou art Airavata among tuskers The Lion among beasts, The Ganges among rivers, And Garuda among Birds, Mahavira among monks, And to thee we bow!
Thou art the thunder among sounds, The Full Moon among the stars, The Sandalwood among fragrances, And Mahavira among Monks, And to thee we bow!
(iii) Oh, Bhagawan, thy vision is our greatest wealth,
Thy sight is a feast for the eyes, Thy worship is the real joy for our hands, To bow to thee is our greatest pleasure, Shramana Bhagavan Mahavira, our prostrations to thee !
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