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1. इन्द्र सभा
देवताओं के अधिपति इन्द्र सौधर्मकल्प नामक स्वर्ग में शेष देवगणों के साथ चौबीसवें तीर्थङ्कर के लिए "अत्यन्त उत्सुकता और भक्ति पूर्वक प्रतीक्षा कर रहे थे। अबतक आये तीर्थङ्करों का इन्द्र ने अपने परिवार के साथ स्वागत करने के साथ साथ, उनके सन्यासी जीवन में भी सहायता कर उनके भक्तों को महदानन्द पहुँचाया। उन्होंने अपने अवधी-ज्ञान से जान लिया कि जम्बूद्वीप के विदेह राज्य के, कुन्दग्राम में चौबीसवें तीर्थङ्कर श्रमण भगवान महावीर का अवतार होनेवाला है। तुरन्त हड़बड़ी में अपने ऐरावत पर अधिरोहण (सवार) होकर जम्बूद्वीप की ओर प्रयाण कर जाने को उद्यत हुए। अतः इन्द्र ने अपने ऐरावत पर अधिरोहित होकर जम्बुद्वीप की ओर प्रस्थान हेने हेतु उद्युत हुए।
1. THE COURT OF INDRA
From his Swarga called Soudharmakalpa, Indra the King of Gods was eagerly watching and awaiting the incarnation of the 24th Tirthankara. Uptil now Indra had welcomed and paid obeisance to the 23 Tirthankaras that had incarnated. He, Indra (as well as his retinue i.e. Heavenly hosts), apart from assisting them to the best of his ability in their leading ascetic lives, had always been a source of joy to the devotees of the Tirthankaras. The King of Gods had known that in Jambudvipa (the present day India) the 24th Tirthankara, Shramana Bhagawan Mahavira was about to incarnate in the village of Kunda in the Kingdom of Videha. Now the time had arrived and so Indra, riding his Airavata was all set to travel to Jambudvipa to be present there on the auspicious occasion.
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