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52. केवल ज्ञान
स्वामी जी अभी तक दो दिनों से उपवास दीक्षा में थे। स्वामी जी भहक नामक गाँव में श्यामक नामक गृहस्थ के घर में ईशान्य दिशा में शिथिलावस्था वाले एक मंदिर के पास, ‘गोघोहिक' मुद्रा में बैठे हुए थे । वह रिजुपालिका नदी का प्रांत था । समय प्रातः काल का था। अभी सूर्योदय हो रहा था। उस समय स्वामी जी को जितना बल और तेज के साथ मिली थी उतनी शक्ति इस के पहले नहीं मिली थी। सचमुच ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वह दिव्य
और भव्य मुहूर्त था । चाँद उत्तर फलगुनी नक्षत्र में चल रहा था। स्वामी जी के मन को एकाएक प्राप्त हुआ था। उन्हे । सम्यास की दीक्षा ग्रहण करके बारह साल छः महीने पन्द्रह दिन हुए थे। तब जो ज्ञान स्वामी जी को मिला था वह ज्ञान अनन्त, सर्वश्रेष्ठ, आटंक रहित, अनर्गल और परिपूर्ण है । इस प्रकार केवल ज्ञान को प्राप्त करके श्रमण भगवान उस ज्ञानामृत में डूब कर उसी स्थिति में ४८ (अठचालीस) मिनिट (निमिष) रह गये थे . उस प्रकार वीतराग महावीर अर्हन्त, जिन, तीर्थंकर, परिपूर्ण ज्ञान से प्रकाशमान हुए थे। देवगण ने स्वामी जी पर ऊपर से फूलों की वर्षा की । इन्द्र ने अपने देवगण - सहित स्वामी के दर्शन करके भक्ति पूर्वक प्रशसा की। स्वामी जी को सब दिशाएँ स्पष्ट रूप से दिकाई पड़ी। वे सब चीजों को, सब में, सब दिशाओं में स्पष्ट रूप से देख सके। वे कहाँ पैदा होते हैं और कहाँ जाते
52 KEVALAJNANA
In the village of Jrumbhaka, the Swami was seated in a posture known as "Godhohika" in the north-cast corner of the house of Syamaka, a villager. Nearby was a temple in ruins. The Swamy had been fasting for two days by then. River Rijupalika flowed by the temple, the time was early morning and the Sun was just rising from the eastern horizon. The swamy felt a new vigour and radiance permeating his body and he felt that this was a new experience. According to astronomy, the time was the period of “Vijaya”- the period when the moon travels through the house of Uttaraphalguni, a star. All of a sudden, the Swamy was endowed with "KEVALAJNANA”the ultimate knowledge or omniscience as they call it in English. By then the Swamy had completed precisely a monkhood of 12 years, 6 months and 15 days. The asceticism the Swamy had undertaken for the reward of the ultimate knowledge thus bore fruit. The knowledge that Mahavira gained during that period was infinite, supreme, free of obstacles, unimpeded and complete in all respects. Having gained this Supreme Knowledge in this fashion, Shramana Bhagawan Mahavira was immersed in Supreme Bliss; and he remained still for 48 minutes in that state. Having thus been divested of all earthly desires Mahavira shone like an Arhantha, a Jina and a Tirthankara - who are endowed with Supreme Knowledge. The Gods rained down a shower of flowers to celebrate this moment. Indra the King of Gods, followed by his divine retinue, paid a
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