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____49. निन्दा
इसके बाद स्वामी जी चौरख नामक शहर को पहुँचे । वहाँ मक्कलि गोशाल नामक अजीवक स्वामी के साथ धूमने लगे । स्वामी जी ने निर्विकार होकर अपने साथ उसने घूमने के लिए मान लिया । वह सारा प्रदेश चोरों से भरा था। हमेशा राजा के सिपाही आने जानेवालों की जाँच करके भेजा करते थे। अपनी काम पर नियत राजा के सिपाहियों ने स्वामी जी और गोशाल को चोर समझा और उनसे कई प्रश्न पूछे। तब स्वामी मौन-व्रत में थे। किसी प्रकार प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो सिपाहियों ने स्वामी और गोशाल को जंजीरों से बन्दी बनाया। उन्हें सजा देते हुए राज-मार्ग पर ले जा रहे थे। उसी मार्ग से जाते हुए समा और विजय ने यह दृश्य देखा । बिना किसी कसूर के स्वामीजी को सजा का अनुभव करते देख कर वे दोनों बहुत खिन्न और दुःखी हुए। उन्होंने राजा के सिपाहियों को स्वामीजी के पहले की घटनाओं अथवा परिस्थितियों को बताया। यह सुनकर राजा के सिपाहियों ने पश्चात्ताप किया और उन्होंने स्वामीजी के चरणों पर सिर नवा कर क्षमा माँगे । दया के प्रतिरूप श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामीजी ने मुस्कुराते हुए उन्हें आशीर्वाद दिये और चंपानगर की दिशा में चल पडे । गोशाल भी स्वामीजी के पीछे चले।
49 SLANDER
Next the Swami reached a town called Chaurakh. Then an Ajivaka by name Makkali Goshala began to follow the Swami wherever he went. The Swami allwed the Ajivaka to accompany him without Himself being affected in anyway. However, the whole area was infested with thieves and the King's soldiers were given orders to check and inspect the strangers and travellers into and out of the town. As a part of this routine duty the soldiers suspected the Swami and Gaushala to be thieves and tried to interrogate them. At that time the Swami was observing the vow of silence and would not give any reply to the questions. The King's servants shackled the Swami and Gaushala as a part of their duty and were marching them through the main thoroughfares. It so happened that two persons by name Sama and Vijaya who were passing along that way were much troubled in their minds at the Swami being subjected to such an indignity for no fault of his. Then they stepped in front of the King's servants and related to them the antecedents of the Swami. Then the King's servants felt ashamed of themselves and fell at the feet of the Swami and requested him to forgive their indiscretion. The Swami, as was his wont, merely smiled at them without showing any annoyance. What was more, he heartily blessed his now repentant tormentors and turned his stens towards the city of Champa. Gaushala trailed the Swami.
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