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(H-1)
'पानी बचाओ...... भाग्य जगाओ'
1.
पानी प्राकृतिक मुद्रा है। इसका संतुलित उपयोग लाभप्रद है तो गंदा या बर्बाद करना अपनी ही बर्बादी का संकेत है। इसलिए न केवल पानी को बचाना लाभदायक है बल्कि पानी की पवित्रता बरकरार रखी जाए तो इससे कई फायदे भी होते हैं। लोग जब भी तीर्थयात्रा पर जाते हैं तो गंगाजल अवश्य साथ लेकर आते हैं। इस गंगाजल को अपने शहर के कुओं-तालाबों में भी इसीलिए डाला जाता है ताकि कोई इन्हें गंदा न करें। जो लोग जलस्त्रोतों में गंदगी डालते हैं या टूटे-फूटे नलों से पानी बर्बाद करते हैं, उन्हें कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है, जबकि पानी की पवित्रता, उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान करती है। 'हम झूठी मान प्रतिष्ठा के नाम पर पानी का अन्धाधुंध अपव्यय कर कितनी जीव विराधना कर बैठते हैं। जितना पानी पीने व दैनिक चर्या में काम में आता है (साधु के लिए 4-5 लीटर), उससे कई गुना अधिक कूलर, स्नान व धोने/सफाई के नाम पर अविवेक के कारण दुरूपयोग कर खर्च करते हैं। कहते हैं कि यदि पानी का एक सूक्ष्म जीव सरसों के आकार जितना अपना शरीर, बना ले, तो एक बूंद के जीव पूरे जम्बूद्वीप की सतह पर नहीं समा सकते हैं। अतः सजगता व विवेक से पानी का उपयोग करें।
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3.
आंकडे:
पृथ्वी पर करीब 2% पानी ही मीठा पानी है। हर साल दुनिया में 12 से 14 अरब क्यूबिक मीटर पानी, इंसान के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होता है। सन् 1984 में प्रति व्यक्ति 9000 क्यूबिक मीटर था। यह उपलब्धता सन् 2025 में घटकर 5100 क्यूबिक मीटर ही रह जायेगी।
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