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________________ 70 ARDHA-MAGADHÍ READER. धणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कामगुणा पगामा । तवं कए तप्पइ जस्स लोगो, तं सव्वसाहो मिहेव तुम्भं ॥ १६ ॥ ५१ ॥ धणेण किं धम्मधुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहिं चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी, बहिविहारा श्रभिगम्म भिक्वं ॥ १०॥५२॥ जहा य अग्गी अरणीउ संतो, खीरे घयं तेल्लमद्दा तिलेषु । एमेव ताया सरीरंसि सत्ता, संमुच्छई नासह नावचिट्ठे ॥ १८ ॥ ५३ ॥ नो इंदियग्गेज्म श्रमुत्तभावा, प्रमुत्तभावा विय' होइ निचो । अकत्थहेडं निययस्स बंधो, संसारहेउं च वयंति बंधं ॥ १६ ॥ ५४ ॥ जहां वयं धम्ममयाणमाणा, पावं पुरा ओरुम्भमाणा परिरक्खयंता, Jain Education International कम्ममकासि मोहा । तव भुज्जीवि समायरामो ॥२०॥ ५५॥ अभाइयंमि लोगंमि सव्वत्र परिवारिए । पडतीहिं, गिहंसिन रइ लभे ॥ २१ ॥ ५६ ॥ अमोहाहिं केण अब्भाहो लोओ, केण वा परिवारिओ । का वा अमे!हा वुत्ता, जाया चिंतापरो हुमि ॥२२॥५०॥ मच्चुणा ब्भाहओ लोश्रो, जराए परिवारिओ | मोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय वियागह ॥ २३ ॥ ५८ ॥ 1 3 चिय 2S O For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006743
Book TitleArdha Magadhi Reader
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB D Jain
PublisherShri Satguru Publications
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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