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ARDHA-MAGADHÍ READER.
धणं पभूयं सह इत्थियाहिं,
सयणा तहा कामगुणा पगामा । तवं कए तप्पइ जस्स लोगो,
तं सव्वसाहो मिहेव तुम्भं ॥ १६ ॥ ५१ ॥ धणेण किं धम्मधुराहिगारे,
सयणेण वा कामगुणेहिं चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी,
बहिविहारा श्रभिगम्म भिक्वं ॥ १०॥५२॥ जहा य अग्गी अरणीउ संतो,
खीरे घयं तेल्लमद्दा तिलेषु । एमेव ताया सरीरंसि सत्ता,
संमुच्छई नासह नावचिट्ठे ॥ १८ ॥ ५३ ॥ नो इंदियग्गेज्म श्रमुत्तभावा,
प्रमुत्तभावा विय' होइ निचो । अकत्थहेडं निययस्स बंधो,
संसारहेउं च वयंति बंधं ॥ १६ ॥ ५४ ॥
जहां वयं धम्ममयाणमाणा, पावं पुरा ओरुम्भमाणा परिरक्खयंता,
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कम्ममकासि मोहा ।
तव भुज्जीवि समायरामो ॥२०॥ ५५॥
अभाइयंमि लोगंमि सव्वत्र परिवारिए । पडतीहिं, गिहंसिन रइ लभे ॥ २१ ॥ ५६ ॥
अमोहाहिं
केण अब्भाहो लोओ, केण वा परिवारिओ ।
का वा अमे!हा वुत्ता, जाया चिंतापरो हुमि ॥२२॥५०॥ मच्चुणा ब्भाहओ लोश्रो, जराए परिवारिओ |
मोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय वियागह ॥ २३ ॥ ५८ ॥
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