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________________ 62 ARDHA-MAGADHÍ READER. अप्पे खुधियं भिक्खु, सुणी डंसति लसए । तत्थ मंदा विसीयंति, तेउपुट्ठा व पाणिणो ॥८॥ अप्पेगे पडिभासंति, पडिपंथियमागता । पडियारगता एते, जे एते एव जीविणो ॥ ॥ अध्पे वइ जुंजंति, नगिया पिंडोलगाहमा । मुंडा कंडूविराटुंगा, उज्जल्ला असमाहिता ॥१०॥ विप्पडिवन्नगे, अप्पणा उ अजाणया । एवं तमचो ते तमं जंति, मंदा मोहेण पाउडा ॥ ११ ॥ पुट्ठो य दंसमससहि, तणफासमचाइया । न मे दिट्ठे परे लोए, जइ परं मरणं सिया ॥ १२ ॥ | संतत्ता केसलोएणं, बंभचेरपराइया | तत्थ मंदा विसीयंति, मच्छा विद्वाव केणे ॥१३॥ आयदंडसम यारे मिच्छासंठिय भात्रणा । हरिसप्पओसमावण्णा, केइ लूसंति नारिया ॥१४॥ अप्पेगे पलियंतेसि, चारो चोरो ति सुव्वयं । बंधंति भिक्खुयं बाला, कसायवयणेहि य ॥१५॥ तत्थ दंडेण संवीते, मुट्ठिया अटु फलेण वा । नातीण सरती बाले, इत्थी वा कुटुगामिणी ॥१६॥ एते भी कसिणा फासा, फरुसा दुस्सहिया सया । हत्थो व सरसं वित्ता, कीवा वसगया हिं ॥१७॥ (भूयगढंग से पढमसुयखंधे तञ्चस्स अज्भयणस्स पढमे उद्देस ) Jain Education International " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006743
Book TitleArdha Magadhi Reader
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB D Jain
PublisherShri Satguru Publications
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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