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________________ पाणवहो। 51 वावि-कलकलंतवेयरणि-कलंबवालुया-कंटहल्लदुग्गमरहजोयण-तत्तलोहपहगमण-वाहणाणि ॥५॥ इमेहिं विविहेहिं पाउहेहिं, किं ते ? मोग्गर-मु. सुंढि-करकय सत्ति-हल-गया मुसल-चक्क-कुंत-तोमर-सल. लगुड चम्मट्टमाइएहिं परोप्परं वेयणं उदीरति अभी- . हणं ॥ तो ते चुण्णियहत्थ पाया उक्कोसंता उप्पयंता निपतंता भमंता पच्छाणुसरण डज्ममाणा निंदंता पुरेकडाई पावगाई तारिसाणि दुक्खाणि अणुभवित्ता तओ आउक्खएणं उत्वटिया समाणा बहवे गच्छति तिरियवसहि, तत्थ य घोरदुक्खाणि जम्मणमरणाणि अणुभवंता कालं संखेउजगं परिभमंति ॥ एवं ते अडंति संसारे बीहणकरे जीवा पाणाइवायनिरया अणंतकालं ॥६॥ जे वि य इह माणुसत्तणं प्रागया कह वि नरगा उवट्टिया, अधण्णा ते वि य दीसंति पायसी विकयविगलरुवा खुज्जा य वडभा या वामणा य बहिरा य काणा य कुंटा य पंगुला य विउला य मूया य मम्मणा य अंधिल्लगा वाहिरोगपीलिया य ॥ एवं नरग-तिरिक्ख. जोणिं कुमाणुसत्तं च विहंडमाणा पावंति प्रणंताई दुक्खाइपावकारी ॥ ___ एसो सो पाणवहस्स फलविवागो इहलोइत्री परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो असाओ वाससहस्सेहि मुच्चइ, न य अवेदइत्ता अस्थि हुमोक्खो त्ति एवमाहंसु, नायकुलणंदणो महया जिणो नु-वीरवरनामधेज्जो कहेसी य पाणवहस्स फलविवागं ॥८॥ (पाहावागरणमुत्तस्स पहमें दार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006743
Book TitleArdha Magadhi Reader
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB D Jain
PublisherShri Satguru Publications
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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