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________________ से नहीं । आगम काल से ही इस साहित्य में भिन्न-भिन्न कथानकों एवं दृष्टान्तों के माध्यम से अहिंसा का संदेश प्रसारित होता रहा है। सवृत्तिआख्यानकमणिकोश के कथानक भी इसी परम्परा के पोषक हैं। प्रस्तुत ग्रंथ के २६ वें जीवदया गुणर्वणनाधिकार में जीवदया को कल्याणकारी बताते हुए कहा है कि - जीवों पर दया करने वाला इस लोक और परलोक में सुखी होता है । यथा : थेवा वि हु जीवदया जियाण कल्लासंपयं कुणइ । मणकप्पियं पयच्छइ अहवा तणुया वि कप्पलया ॥ आख्यानकमणिकोशवृत्ति, आख्यानक - ८३, गाथा - २८४ इस अधिकार में श्रावकपुत्र, गुणमती मेघकुमार एवं दामन्नक धीवर के कथानक वर्णित हैं। ये सभी आख्यानक जीवन उत्थान की पर्याप्त सामग्री समेटे हुए हैं। मेघकुमार के कथानक द्वारा पशुजीवन में करुणा के महत्त्व को दर्शाया गया है। मेरुप्रभ हाथी ने अत्यन्त वेदना सहन करते हुए प्राण त्याग दिए थे। फलस्वरूप मनुष्यभव का बन्ध कर उसने मेघकुमार के रूप में जन्म लिया । दामन्नक के कथानक द्वारा नियम पालन में दृढ़ता के महत्त्व के साथ-साथ जीवदया को दीर्घ आयुष्य का बताया गया है - दीहाउयाइ हेऊ जीवदया, मूलगा. ३५ । दामन्नक पूर्वभव में धीवर था । एक मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर उसने जीवदया का संकल्प ग्रहण कर लिया। अन्य मछुआरे उसे समझाते हैं कि इस प्रकार का नियम हमारा धर्म नहीं है, धीवरवृत्ति हमारी जीविका है। किन्तु अहिंसा के प्रति निष्ठा के कारण दामन्नक मछली पकड़ने को तैयार नहीं होता है। तब अन्य मछुआरों द्वारा उससे जबरदस्ती पानी में जाल फिंकवाया जाता है लेकिन वह हर बार जाल को ढीला छोड़ देता है और मछलियाँ जाल से निकल जाती हैं। जीवदया के इस नियम के निर्वाह से अर्जित पुण्य के कारण दामन्नक अनेक बार मृत्यु के चुंगल से बच जाता है। Jain Education International सम्यक् श्रद्धा जीवन में श्रद्धा का बड़ा महत्त्व है । सम्यक् सिद्धान्तों के प्रति श्रद्धा ही सम्यग्ज्ञान व श्रेष्ठ आचरण का आधार होती है । उसी से आध्यात्मिक उन्नति सम्भव है। छठे सम्यक्त्ववर्णनाधिकार में महावीर की परमभक्त श्राविका सुलसा का कथानक वर्णित है। सुलसा महावीर की परम भक्त श्राविका थी । अरिहन्तदेव तथा निग्रंथ मुनियों के अतिरिक्त अन्य किसी पर उसकी श्रद्धा नहीं थी ( ६ . २५.३९ ) । स्वयं महावीर ने उसकी श्रद्धा एवं भक्ति की भूरी-भूरी प्रशंसा की थी। महावीर के मुख से सुलसा की प्रशंसा सुनकर अम्बड परिव्राजक ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि के रूप बनाकर उसके सम्यक्त्व को डिगाने का प्रयास किया । किन्तु वह सुलसा की सम्यक् श्रद्धा को विचलित न कर सका। अपने दृढ़ सम्यक्त्व के कारण ही सुलसा ने तीर्थंकर नाम गोत्र का बन्ध किया । प्रस्तुत कथानक जन सामान्य को यही संदेश देता है कि जीवन में सत्य तथा इष्ट के प्रति सच्ची श्रद्धा मनुष्य को व्यर्थ की भटकन से रोकती है। 281 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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