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मा चिट्ठह मा जंपह मा चिंतह किं जेण होइ थिरो ।
अप्पा अप्पम्मि रओ इणमेव परं हवे झाणं ॥ - दव्वसंगहो, गाहा-५६
किमवि मा चिट्ठह, किमवि मा जंपह, किं वि मा चिंतह एवं करणेण सगप्पा थिरो होइ, इणमेव पर झाणं हवे | झाणस्स साहणाई मुक्खेण तिविहारं हवंति। तवो, सुदं, वदं च । तवसुदवदसहिदप्पा एवं झाणरहधुरंधरो हवे । झाणसिद्धत्थं कम्मि वि थले गमणस्स आवसगदा णत्थि किं दुसया तवसुदवदसु णिरदा होइ । उत्तं च
तवसुदवदवं चेदा झाणरहधुरंधरो हवे जम्हा |
तम्हा तत्तियणिरदा, तल्लुद्धीए सदा होह || - दव्वसंगहो, गाहा - ५७
एवं पयारेण दव्वसंगहे विस्सजणीणमुल्लाणं पये पये दंसणं होइ । सव्वस्स किदे गंथों अयं उवजोई वट्टदे ।
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