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________________ 26. महाकवि स्वयम्भू और उनका पउमचरिउ प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं का क्षेत्र प्रायः एक सा था तथा एक विशेष प्रकार का साहित्य इनमें लिखा गया है। विकास की दृष्टि से भी इनमें घनिष्ठ सम्बन्ध है। अत: कई विद्वानों ने प्राकृत अपभ्रंश को एक मान लिया है, जबकि ये दोनों स्वतंत्र भाषाएँ हैं। अपभ्रंश जन-सामान्य की भाषा का पूर्णतया प्रतिनिधित्व करती है। इसके अतिरिक्त विभक्ति, प्रत्यय, परसर्गो में भी प्राकृत और अपभ्रंश स्पष्ट अन्तर है। अपभ्रंश में देशी रूपों की बहुलता है। यह उकार बहुला भाषा है। ' Jain Education International -श्रीमती डॉ. सरोज जैन, श्रवणबेलगोला अपभ्रंश को आभीरी, भाषा, देशी एवं अवहट्ठ आदि का नाम भी समय-समय पर दिये गये हैं। ये सब नाम अपभ्रंश के विकास को सूचित करते हैं। पश्चिमी भारत की एक बोली- विशेष आभीरी से अपभ्रंश प्रभावित है, भाषा की बोली होने से इसे भाषा कहा गया है। कथ्य भाषा होने से यह देशी कही गयी है तथा परवर्ती अपभ्रंश लिए वह कहा गया है, जो अपभ्रंश और हिन्दी को परस्पर जोड़ने वाली कड़ी है। वह आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की पूर्ववर्ती अवस्था है। ' महाकवि स्वयम्भूः अपभ्रंश के आदि कवि के रूप में स्वयम्भू को स्मरण किया जाता है। अब तक उपलब्ध अपभ्रंश रचनाओं स्वयंभू की प्रसिद्ध रचनाएँ - पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ एवं स्वयंभूछन्द उनकी काव्य-प्रतिभा का प्रतिनिधित्व करती हैं। यद्यपि स्वयंभू ने अपने ग्रन्थों में अपभ्रंश के पूर्ववर्ती कवियों-चतुर्मुख, ईशान आदि का उल्लेख किया है, किन्तु इनके साहित्य आदि का पूरा परिचय उपलब्ध न होने से उनकी काव्य-प्रतिमा का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। अतः न केवल दक्षिण भारत के अपभ्रंश कवियों में, अपितु सम्पूर्ण अपभ्रंश साहित्य में स्वयम्भू का योगदान विशेष अर्थ रखता है। स्वयम्भू अपभ्रंश के पहले महाकवि हैं, जिन्होंने राम और कृष्ण - कथा को प्रबन्ध-काव्यों का विषय बनाया है।' जिस प्रकार संस्कृत और प्राकृत की साहित्यिक कृतियों का शुभारम्भ रामकथा से होता है उसी प्रकार स्वयम्भू ने अपभ्रंश साहित्य में भी पउमचरिउ नामक पहला प्रबन्ध-काव्य लिखा। अपभ्रंश में कृष्ण और पाण्डव-कथा को सर्वप्रथम काव्य रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय स्वयम्भू को है । जैन साहित्य में कृष्ण-कथा को व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने में भी स्वयम्भू योग है। साहित्य एवं भाषा के क्षेत्र में स्वयम्भू के योगदान को देखते हुए उन्हें अपभ्रंश का युग प्रवर्तक कवि कहा जा सकता है। उन्होंने भारतीय काव्य की अनेक कथाओं और अभिप्रायों को विकसित किया है। अपभ्रंश जैसी लोक भाषा के स्वरूप को सुस्थिर कर उसे महाकाव्य के उपयुक्त बनावा है तथा संवादतत्त्वों एवं सूक्तियों आदि से उसे समृद्ध किया है। डॉ. संकटा प्रसाद उपाध्याय ने कवि स्वयम्भू 'पुस्तक में विशेष अध्ययन प्रस्तुत किया है। नामक 225 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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