________________
वियलइ जोव्वणु ण करयलजलु णिवडइ माणुसुणं पिक्कउ फलु (७/१/८) अर्थात् अंजुली के जल की भाँति यौवन विलित होता रतहा है तथा पके हुए फल की भाँति मनुष्य निपतित होता है। इसी प्रकार के उक्ति-वैचित्र्य २७/१, ३१/१०, ३२/२०, ९३/६ आदि स्थलों पर भी देखें जा सकते हैं।
रसावतरण -
पुराण-साहित्य में प्रायः परिणय-सम्बन्धों या पर-देश या शत्रु-विजय के निमित्त युद्धों के वर्णन किये गये हैं। इस प्रकार के प्रसंगों मे वीर-रसात्मक स्थलों के साथ ही मध्यान्त में बीभत्स-रस की योजना भी की गई है। (५२/२, ७७/१२ आदि)।
करुण-रस के व्यंजक अनेक मार्मिक प्रसंग भी तिसट्ठिमहा. में उपलब्ध होते हैं। जैसे रावण की मृत्यु पर उसके परिवार वालों का करुण-क्रन्दन, कृष्ण की मृत्यु पर बलदेव की करुणाजनक स्थिति आदि का चित्रण करुणरस के मार्मिक उदाहरण हैं।
तिसट्ठिमहा. में प्रधान भाव है निर्वेद। शलाका-महापुरुषों (यथा-तीर्थंकरों एवं चक्रवर्ती राजाओं) को सर्वप्रथम सांसारिक सुख-भोगों में आसक्त चित्रित किया जाता है। तत्पश्चात् कोई प्रसंग-विशेष उपस्थित कर उन्हें उन्हीं सांसारित सुख-भोगों की क्षणिकता का आभास कराया जाता है। इसके बाद वे निर्ममता पूर्वक घरपरिवार, राज्य पाट आदि का त्यागकर कठोर तपश्चर्या में लीन होकर स्वर्ग, मोक्ष-गति प्राप्त करते हैं। इस प्रकार प्रस्तुत तिसट्टिमहा. में प्रमुख चरित-नायकों का चित्रण शान्तरसपर्यावसायी है और कवि ने इस शान्तरस के सहायक अनेक नीरस पौराणिक शैली में रचित काव्यरसहीन प्रसंगों की सृष्टि की है। लोकोक्तियाँ
तिसट्ठिमहा. में भी अनेक ऐसी लोकप्रिय लोकोक्तियाँ उपलब्ध हैं जिनसे परवर्ती अनेक कवि प्रभावित ही नहीं हुए अपितु उनका रुपान्तरण कर उन्हें अपनी-अपनी रचनाओं में भी प्रयुक्त किया। उनके कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं - धोयंते दुद्धउ पक्खालउ होइ कहिमि - दूध से होने से भी कोयला कहीं उजला हो सकता है? इंगालु ण धवलउ-७/८/२२ भणु को कयंत दंतंति वसिउ-१२/१७/८ - यम के दाँतों के बीच भला कोई जीवित रह सकता है ? उट्ठवि सुत्तउ सीहु केण - १२/१७/६ - सोते हुए सिंह को कौन जगावे? मण भंगि वरु मरणु ण जीविउ - १६/२०/८ - स्वाभिमान के भंग होने पर मर जाना ही उत्तम है। करमय कणयवलय पविलोयणिहो किं णियइ दप्पणं. ५२/८/२
___- हाथ-कंगन को आरसी (दर्पण) क्या ?
- 196
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org