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________________ बम्बई और लन्दन : (537) प्रयत्न करें तो इन दोनों नगरों की विभिन्नता आश्चर्यजनक रूप में सामने आती है। हां, तब यह ख्याल अवश्य आता है कि यह कितना अच्छा होता कि दोनो नगर समान होते ? बम्बई में पर्यटकों या यात्रियों के लिये भारतीय या योरोपीय ढंग के होटलों के अतिरिक्त धर्मशालायें पर्याप्त मात्रा में हैं। लन्दन में आपको धर्मशाला के समकक्ष कोई चीज दखने को नहीं मिलती। पुराने जमाने की चीजें भी आधुनिक रूप में बदल गई हैं और पर्याप्त मंहगी पड़ने लगी हैं। लन्दन के औद्योगिक समाज में शायद पारमार्थिक संस्थाओं का कोई स्थान न बन सका हो। नवागंतुक भारतीय को धर्मशाला- जैसी संस्थाओं का अभाव लन्दन में बहुत अखरता है। यह सही है कि मनुष्यों के लिये इस तरह की संस्थायें न हों, पर रुग्ण, वृद्ध, कुत्ते, बिल्ली आदि के लिये देशव्यापी संस्थायें हैं जहां उनकी उचित देखभाल की जाती है। इसी प्रकार समाज हित के लिये किये जाने वाले विभिन्न अल्प या दीर्घकालीन योजनाबद्ध कार्यों के लिये बनी अगणित संस्थाओं की सूची 'टाइम्स' समाचार पत्र में प्रकाशित विज्ञापनों से बनाई जा सकती है। इससे यह अनुमान होता है कि धर्मशाला जैसी संस्था के बावजूद भी, हिन्दुस्तान में ऐसी अन्य संस्थाओं की देशव्यापी कमी है। बम्बई के औद्योगिक भारतीय के लिये होटल का 15-20 रू. प्रति रात्रि का व्यय शायद न भी अखरे, पर सामान्य भारतीय के लिये भाग्य की बात है । ब्रिटेन में पहुंचे भारतीयों ने अब कई प्रमुख स्थानों पर गुरुद्वारों का प्रबन्ध कर लिया है जहां कोई भी नवागंतुक या यात्री कुछ दिनों के लिये निःशुल्क ठहर सकता है। यह सही है यह प्रबन्ध प्रतिमानित नहीं माना जा सकता, फिर भी उपेक्षणीय भी नहीं कहा जा सकता है। प्रायः प्रत्येक भारतीय से यह सुनने को मिलता है कि यूरोप बहुत मंहगा है। इससे मन में यही धारणा होती है कि वहां चीजों के भाव तेज हैंखासकर ऐसी चीजों का जिनका हम प्रतिदिन उपयोग कर रहे हैं। होटलों के किराये से इस बात की थोड़ी बहुत पुष्टि होती दिखती है। पर जब पहले ही दिन आप लन्दन में बाजार जायें, तो आपको महंगाई का जो रूप देखने को मिलता है, वह उतना ही आश्चर्यकारी है, जितना कि हिदुस्तान में फैली भ्रामकता को दूर करने वाला हैं। उदाहरणार्थ, दूध और चीनी कोई एक रूपये किलो मिलता है। घी तो यहां नहीं मिलता, पर मक्खन 3,5-4,5 रू, शक्कर पडेगा, आटा 0.75 पैसे सेर मिलेगा साग-सब्जी खूब मिलती है और भाव खूब घटता बढता रहता है। पर आलू प्याज 25 और 50 पैसे सेर तक चले जाते हैं। फल तो वहां हिन्दुतान से सस्ते मिलते हैं। टमाटर जैसी कुछ चीजें मंहगी भी हैं। मांस, अंडे काफी सस्ते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि खाने-पीने की चीजें यहां हिन्दुस्तान से बहुत सस्ती ही पड़ेंगी और यहां आकर हम अपने खान-पान का स्तर, उतनी ही कीमत में कुछ अच्छा कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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