SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 555
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बम्बई और लन्दन : (535) हैं। प्रायः सभी वस्तुओं पर ऊपर मूल्य-पट लगा रहता है। इसलिये दुकानकार को ग्राहकों के साथ वस्तुओं के मूल्य के सम्बन्ध में माथापच्ची करने की जरूरत नहीं पड़ती। भारत में भी इस मूल्य-पट की परम्परा का पुनरुद्धार होना चाहिये, ऐसा प्रायः स्वदेशियों व विदेशियों का, जिन्हें विदेश का अनुभव है, मत बन जाता है। हां, लन्दन की चाय-चीनी, बिना दूध की ही अधिकतर होती है, जबकि बम्बई की चाय इससे उलटी है। ____ भारत में हम लन्दन की तहजीबी भाषा के आदी नहीं होते। 'एक्सक्यूज मी' कहकर प्रश्न पूछना और उत्तर के बाद 'बैंक यू' की बात जानते तो जरूर हैं, पर प्रयोग नहीं करते। फलतः लोगों से प्रश्न पूछने पर प्रायः अपनी अशिष्टता का प्रदर्शन हो ही जाता है और हम उत्तर देने वाले की घूरती निगाहों के शिकार बन जाते हैं। जैसे वे कह रही हों – उजड्ड कहीं का।। लन्दन आते ही कुछ ही दिनों में वहां की ऋतु की विचित्रता का अनुभव हुए बिना नही रहता । कभी-कभी तो हमें हिमपात, जलवृष्टि और चिलकती हई सूर्य-रश्मियों का एक साथ अनुभव होने लगता है और तीन ऋतुओं का वह एकी भवन बम्बई वालों को शायद ही अब तक नसीब हुआ हो। यह सही है कि बम्बई के नागरिक औद्योगीकरण के कारण उत्पन्न 'कुहरे' से भरी जलवायु का कभी अनुभव कर लेते हो। ऋतु की चर्चा एक महत्त्वपूर्ण विषय है। हर व्यक्ति यह प्रश्न करता है - आपको यहां की ऋतु कैसी लगती है?" क्या उत्तर दिया जाय। प्रायः यह उत्तर तो प्रश्नकर्ता ही दे देते हैं-हमे यहां की ऋतु स्वयं पसन्द नहीं है। उफ. कितनी विषम और भयंकर ! सच पूछिये, वर्ष के वे गिने चुने दिन जिनमें निरभ्र आकाश या सूर्य किरणों की लालिमा के दर्शन होते हों, यहां के लोगों के जीवन के सबसे आनन्दमय दिन होते हैं और तब उनसे ऋतु सौंदर्य के इन ऐतिहासिक दिनों का सदियों का लेखा जोखा सुन लीजिये । हां, एक बात प्रायः और पाई जाती है कि वहां भी ऋतु-विद्या-विशारदों की ऋतु सम्बन्धी भविष्यवाणी की विश्वसनीयता बडी ही विवादास्पद है। कुशल, क्षेम और परिचय का तरीका भी यहां अजीब ही है। बम्बई में "कहिये, आप कैसे हो।" इसके उत्तर में समुचित सूचनायें मिल जाती हैं। पर लन्दन में इस प्रकार के प्रश्न का उत्तर ठीक वही प्रश्न है। अर्थात् आप एक दूसरे के कुशल-क्षेम से अपरिचित ही रहते हैं। हां, मिलते समय की मुस्कुराहट भरी बातों का चर्चाओं से और कुछ अनुमान लगा हो, तो बात अलग है। भारत में कुशल-क्षेम जैसी बात अभिन्नता की द्योतक है। यहां यह मात्र शिष्टाचार है। परिचय भी बड़े मनोरंजक ढंग से होता है। उदाहरणार्थ यदि 2-4 अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति किसी आयोजन में कहते दिखते हैं- ओ, हम आप लोगों के नाम तो याद नहीं रख सकते। हां अपने नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy