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________________ (468) : नंदनवन नहीं चाहिए। फिर, क्षेत्र विशेष में पाये जाने वाले फल-फूलों के विषय में तो जानकारी मिल भी सकती है, किन्तु विदेशी खाद्यों एवं नवीन फलों के विषय में कैसे मिल सकती है? इस जानकारी के अभाव में अनजाने खाद्य का भक्षण हानिकर भी हो सकता है। अतः अज्ञात फलों की अभक्ष्यता स्वयं सिद्ध है। यहां 'फल' पद दिया है, पर हमें उसका अर्थ खाद्य ही लेना चाहिए। 19. तुच्छ फल सामान्यतः, तुच्छ फलों में ऐसे फल समाहित होते हैं जिनमें खाद्यांश कम हो और अधिकांश अनुपयोगी हो। आशाधर, थैकर एवं शास्त्री ने मकोय, जामुन, कचरिया आदि के उदाहरण इस कोटि के फलों के लिये दिये हैं। स्पष्ट है कि गुठली के कारण इनका खाद्यांश कम है। इनमें कभी-कभी सूक्ष्म जीव एवं त्रस जीव भी देखे जाते हैं। अतः इन्हें अभक्ष्य बताया गया है। इनकी अभक्ष्यता के दो अन्य कारण भी हैं : बहु आरम्भ और गुठली आदि के फेंकने पर होने वाली सड़न से होने वाला जीवघात। इनके भक्षण से तृप्ति न होना भी एक कारण हो सकता है। पर सामान्य धारणा यही है कि यदि ये फल निर्जीव हों और शुद्ध हों, तो इनके भक्षण में दोष नहीं है। देखने में तो यही आया है कि ये लोकप्रिय भक्ष्य हैं। कहीं-कहीं तुच्छ पुष्प-फलों का भी उल्लेख है। इसमें अनेक जाति के फूलों को भी उपयोग में न लेने की बात समाहित होती है। ऐसा माना जाता है कि तुच्छ फलों के खाने से रोग सम्भावित हैं। यह बात व्यक्ति-आधारित माननी चाहिये। 20. मृत जाति लक्षण युवाचार्य महाप्रज्ञ ने बताया है कि जैन मान्यतानुसार सारा दृश्य जगत् या तो सजीव है या जीव का परित्यक्त शरीर है। सारा कठोर द्रव्य सजीव ही है। वह शस्त्रोपहत होने से निर्जीव हो जाता है। इस आधार पर 'मृत जाति पद से अनेक प्रकार के खनिज (जो प्रायः कठोर होते हैं और औषधियों के काम आते हैं) और सैंधव आदि लवण (ये भी खनिज के ही एक रूप हैं) लिये जाते हैं। फलतः ये मूलतः सजीव हैं। इन्हें शस्त्रोपहत किये बिना नहीं खाना चाहिये। यह शस्त्रोपहनन विलयन बनाने, पीसने या गर्म करने आदि क्रियाओं से भी होता है। अतः अचित्त किये गये खनिज और लवण तो भक्ष्य हैं, पर मूलतः ये खनिज रूप में अभक्ष्य हैं। वस्तुतः 'मृत जाति के पदार्थ पृथ्वीकायिक कोटि के जीव माने जाते हैं। यह सुज्ञात है कि भूगर्भ के अन्दर और पृष्ठ पर अनेक खनिज लवण- सज्जी मिट्टी, सुहागा, लौह-ताम्र-पारद के लवण, सैंधवादि लवण, खड़िया मिट्टी आदि पाये जाते हैं। ये भोजन के आकस्मिक और अल्पमात्रिक घटक हैं। ये लवण पापड़ आदि अनेक खाद्य बनाने एवं औषधियों के काम आते हैं। इनको अकेले ही या अनेक अन्य द्रव्यों के साथ कूट-पीस कर अनेक स्वास्थ्यरक्षक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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