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________________ (452) : नंदनवन वस्तुतः 'मद्य' शब्द से वे सभी पदार्थ ग्रहण किये जाने चाहिए जो उसके समान मादक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इनके अन्तर्गत गांजा, अफीम, चरस तथा एल.एस.डी., हीरोइन आदि नये संश्लेषित पदार्थ भी समाहित होने चाहिए। पुराने समय में इनका समुचित ज्ञान-प्रचार न होने से, सम्भवतः इनका उल्लेख न हो पाया हो, पर ये सभी मादक और नशीले पदार्थ हैं। शास्त्री ने इन सभी का अभक्ष्यों की मादक कोटि में समाहार किया है। फिर भी, मद्य में यह विशेषता तो है ही कि यह किण्वन या चलित-रसन की किया से प्राप्त होता है जबकि अन्य अनेक मादक पदार्थों के निर्माण में यह क्रिया समाहित नहीं हैं। मद्य या उसके विविध रूपों के विषय में शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक जानकारी सारणी 4 में दी गई है। इससे एतद्विषयक प्राचीन एवं नवीन तथ्यों के ज्ञान की तुलना की जा सकती है। मद्य के निर्माण और प्रभावों का शास्त्रीय विवरण उपासकाध्ययन, सागारधर्मामृत, पुरुषार्थसिद्धियुपाय तथा श्रावक- धर्म-प्रदीप आदि में पाया जाता है। वैज्ञानिकों ने भी इस सम्बन्ध में पर्याप्त अध्ययन किया है। इससे पता चलता है कि विभिन्न प्रकार के मद्यों का निर्माण कुछ विशिष्ट परजीवी वनस्पतियों की कोशिकाओं की विकास प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है। यह विकास प्रक्रिया एक रासायनिक क्रिया है जिसके कारण ये कोशिकायें अपने विकास हेतु शर्करामय पदार्थों को विगलित करती हैं। इसके फलस्वरूप मद्य द्वितीयक उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया में ऊष्मा निकलती है, साथ ही जल की वाष्प एवं कार्बन डाइ-ऑक्साइड प्राप्त होते हैं। इनसे उपकरण में पर्याप्त फैन बनता है और उफान जैसा आता दिखता है। उपकरण भी गरम हो जाता है। आयुर्वेद में भी आसव-अरिष्ट बनाते समय ऐसी ही स्थितियों को नियंत्रित करने के लिये स्थूल उपाय किये जाते हैं। सम्भवतः इसी प्रकार के निरीक्षणों के कारण मद्य-निर्माण के समय जीवोत्पत्ति या मद्य के बिन्दुओं में जीवों के अस्तित्व का मत आचार्यों ने प्रस्तुत किया। यद्यपि इस प्रक्रिया में सूक्ष्म जीवों के अस्तित्व से सम्बन्धित यह निरीक्षण महत्त्वपूर्ण है पर उसकी भूमिका की चर्चा आधुनिक दृष्टि से मेल नहीं खाती। सारणी 4 : मद्य-सम्बन्धी प्राचीन एवं नवीन तथ्य प्राचीन नवीन 1. उत्पादन (1) मद्य सुराबीज, गुड़ आदि (1) विभिन्न प्रकार के मद्य शर्करा युक्त (महुआ, को सड़ाकर (किण्वितकर) गुड़, धान्यादि) पदार्थों के यीस्ट - बनाया जाता है। कोशिकीय किण्वन से प्राप्त होते हैं। (2) इसके निर्माण के समय (2) ये कोशिकायें परजीवी वनस्पति हैं। ये अपने अनेक रसज/ त्रस जीव विकास के लिये शर्कराओं को विद्वेलित उत्पन्न होते हैं। करती हैं और मद्य बनता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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