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________________ वनस्पति और जैन आहार शास्त्र : (425) हमारे आहार में, सामान्यतः, दोनों प्रकार के प्रत्येक शरीरी वनस्पति होते हैं। धवला 2:1,87 में मूली, अदरक (कन्दमूल) आदि को बादर-निगोद योनिभूत प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीरी ही बताया है। इसे धवला के ही 1.1.41 में भी पूर्व में बताया गया है। दिगम्बर ग्रंथों में प्रतिष्ठित या अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीरी वनस्पतियों के कुछ उदाहरणों को छोड़कर, अनेक नाम नहीं मिलते। इसके विपर्यास में, प्रज्ञापना एवं जीवाभिगम आदि में प्रत्येक शरीरी बादर वनस्पतियों के बारह प्रकार बताकर उनके प्रायः 350 नाम गिनाये हैं। इनमें से अनेक-हरित, औषधि, धान्य, शाक आदि के फल, पर्व, बीज आदि हम आहार एवं औषधि में काम में लेते हैं। ये सभी वनस्पति प्रकृति में कच्चे या कालपक्व रूप में पाये जाते हैं। इन्हें 'आम' शब्द से निरूपित किया जाता है। फलतः 'आम' शब्द का अर्थ केवल सचित्त सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति मात्र नहीं लेना चाहिये। आम या अन्य समानार्थी शब्दों से सभी प्रकार के हरे या कच्चे वनस्पतियों (चाहे वे साधारण कोटि के हों या प्रत्येक के) को लेना चाहिये। दिगम्बर ग्रंथों की तुलना में, प्रज्ञापना आदि ग्रंथों में साधारण वनस्पतियों के प्रायः 100 नाम दिये गये हैं जिनमें अनेक कन्द और मूल आते हैं। इन्हें बादर निगोद कहा जाता है। साधारण जैन इन्हें भूमिगत तने वाले पौधे कहते हैं। इनके अंतर्गत, वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार, निम्न कोटियां आती हैं ': 1. प्रकन्द (रि-जोम) : हल्दी, अदरक आदि 2. कन्द (टयूबर) : आलू आदि 3. शल्क कन्द (बल्ब्स) : प्याज, लहसुन आदि 4. घन कन्द (कौम) : क्रोकस आदि इनके अनुसार, जैनों द्वारा स्वीकृत कन्दमूल या गढ़त वनस्पतियां इन चार कोटियों में समाहित हो जाती हैं। इन वनस्पतियों का तना जमीन के अंदर मूर्तरूप लेता है और अपने ऊपरी अंश को पोषण देता है। यहां यह ध्यान दीजिये कि वनस्पति शास्त्री हल्दी और अदरक की कोटि को लहसुन और प्याज तथा आलू की कोटि से भिन्न मानते हैं। शायद ये धूप में सुखाये या परिवर्तित किये जा सकते हैं, फलतः इनकी भक्ष्यता उतनी जड़मूल नहीं है जितनी आलू आदि की है क्योंकि वे धूप द्वारा सुखाये नहीं जा सकते, वे केवल अग्निपक्वन से परिवर्तित किये जा सकते हैं। यहां अग्नि से पारम्परिक अग्नि के अतिरिक्त विद्युत-भट्टी, माइक्रोवेव या अन्य आधुनिक तेजस्कायिक उत्पादी उपकरण भी लेने चाहिये। साधारणतः सामान्यतः प्रयोग में आने वाले इस कोटि के वनस्पति निम्न हैं: 1. अदरक 2. हल्दी 3. मूली 4. गाजर 5. प्याज 6. लहसुन 7. आलू 8. घुइयां 9. शकरकन्द 10. जमीकन्द 11. सूरणकन्द 12. शलजम आदि। इन कन्दमूलों का पत्तेवाला भाग जमीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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