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________________ हिंसा का समुद्र : अहिंसा की नाव : (401) सारणी 5: गृहस्थ एवं साधु की प्रवृत्तियों में हिंसा का आनुभविक मान प्रवृत्तियां गृहस्थ-जगत् में हिंसन साधु-जगत् में हिंसन 1 आहार 6.90 X 10° 6.90 x 10° 2 श्वासोच्छवासादि 1.35 x 1007 1.35 x 10227 3 शौचादि क्रियायें 1.0 x 1030 1.0 x 1029 3.62 x 101 3.62 x 101 संभोगमूलक क्रिया 1.0 x 101 कृषि / आजीविका 1.62 x 10" विहारमूलक हिंसा 3.26 x 1014 3.50 x 104 आमंत्रणजन्य हिंसा 6.76 x 106 8 अनुमोदित हिंसा 6.93 x 10120 9 हवन आदि में हिंसा 1.0 x 1012-20 10 धर्मोपदेश श्रवण जन्य हिंसा 2.95 x 1013 11 धार्मिक क्रियामूलक हिंसा 1.36 x 10129 12 स्वाध्यायादिजन्य हिंसा 1.10 x 10227 13 आरम्भजा हिंसा अपरिमित योग : 30.84 x 10277 24.40 x 1027 सन्दर्भ : 1. जॉनसन, डब्लू, जे.; हार्मलैस सोल्स, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1995 पेज 45-83 2. स्वामी समन्त्रभद्र; रत्नकरंडश्रावकाचार, सरल जैन ग्रंथमाला, जबलपुर 1938 पेज 49 3. आचार्य, अमृतचन्द्र; पुरुषार्थसिद्धियुपाय, स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ़ 1978 पेज 42-77 4. पंडित, आशाधर; सागारधर्मामृत (टी.पं.देवकीनंदन), श्लोक 4.5 5. वर्णी, जिनेन्द्र; जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश-4, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1988 पेज 31 6. मरडिया, के.वी.; सांइटिफिक फाउंडेशन आव जैनीज्म, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली 1996 पेज 22 7. जैन, ए.के.; व्यक्तिगत पत्राचार 8. आचार्य, शिवार्य; भगवतीआराधना-1, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, 1978, पेज 490 9. प्रश्न व्याकरण, आगम प्रकाशन समिति व्यावर, 1983 पेज 5-28 10. सुधर्मा स्वामी, आचारांग-1, वही, 1980 पेज 7 11. नरेन्द्र प्रकाश; चिन्तन-प्रवाह, दि. जैन महासभा, लखनऊ, 2001 पेज-24 12. अलेक्जेंडर, मार्टिन; स्वाइल्स, लंदन, 1956 पेज 15 13. लोढ़ा के. एल.; मधुकर केसरी अभि.ग्रंथ, बीकानेर, 1970 पेज 163. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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