________________
(388) : नंदनवन
घंटे
वास्तविक सामाचार तो दैनिक चर्या ही है। इसके अतिरिक्त, विशिष्ट पर्वो के समय भक्तिपाठ या वर्षायोग के समान नैमित्तिक क्रियायें भी होती हैं। यहां हम पहले साधु की सामान्य दिनचर्या पर विचार करेंगे।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष -21 के कृतिकर्म प्रकरण में साधुचर्या (सारणी 2) दी गई है। इसके दो रूप हैं : (1) निवृत्तिमार्गी क्रियायें और प्रवृत्तिमार्गी क्रियायें।
सामान्यतः एक दिन में सूर्योदय से सूर्यास्त तक 60 घड़ी या 24 घंटे होते हैं। यद्यपि सूर्योदय या सूर्यास्त के समय विभिन्न ऋतुओं पर आधारित हैं और भारत में इस प्रक्रिया में दो घंटे तक का अन्तर पड़ता है, फिर भी हम अपनी सरलता के लिये सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच 12 घंटे का समय मान सकते हैं और सूर्योदय का समय भी 6.00 बजे प्रातः का मान सकते हैं। इस आधार पर शास्त्रीय मत के अनुसार साधु को प्रातः 2 बजकर 48 मिनट पर निद्रा त्याग करना चाहिये एवं अपनी निवृत्ति एवं प्रवृत्तिमार्गी चर्या का प्रारम्भ और पालन करना चाहिये। इस शास्त्रोक्त चर्या पर ध्यान देने से ज्ञात होता है कि साधुओं की चर्या के विभिन्न अंशों का परिमाण निम्न है :
समय
प्रतिशत घंटे मिनट स्वाध्याय
__17 3 6 17.60 73.13 वन्दना/भक्ति
01 36 01.60 6.66 दोष परिहार/प्रतिक्रमण
1.60
6.66 प्रवृत्तिमूलक क्रियायें
3 12 3.20 13.33 योग -
24 घंटे
24.00 99.98 __ इनमें स्वाध्याय का प्रतिशत सर्वाधिक है। इसके अन्तर्गत, निश्चिय से ज्ञान की आराधना एवं आत्महितार्थ अध्ययन समाहित होता है और व्यवहार से अंग और अंगबाह्य ग्रंथों की वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश समाहित हैं। धर्मग्रन्थों का पढ़ना और पढ़ाना भी स्वाध्याय ही है। इसे अन्तरंग तप भी कहा गया है। इसके प्रारम्भ और अन्त करने की एक निश्चित विधि है जिसमें प्रत्येक स्वाध्याय में 3 कायोत्सर्ग या क्रियाकर्म होते हैं। जिनेन्द्र वर्णी ने बताया है कि स्वाध्याय आदि क्रियायें अन्तरंग और बाह्य- दो प्रकार की होती हैं। इनमें अन्तरंग क्रियायें तो वीतरागता या समता के पेट में समा जाती हैं। फलतः यहां वाचिक और कायिक क्रियाओं की अपेक्षा से ही वर्णन है जिसमें पाठ आदि का उच्चारण और शारीरिक कृतिकर्म किये जाते हैं। यही बात देववन्दना और प्रतिक्रमण पर भी लागू होती है। इन सभी में कुल मिलाकर यथाविधि 19 भक्तिपाठ किये जाते हैं।
36
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org