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________________ हिंसा का समुद्र : अहिंसा की नाव : (383) (4) आरती, धूपज्वलन एवं हवन आदि धार्मिक कार्यों में हिंसा सामान्य जैन गृहस्थों के छह आवश्यक कर्तव्य बताये गये हैं : (1) देवपूजा (2) गुरुवंदना (3) स्वाध्याय (4) संयम (5) तप (6) दान। इनमें देवपूजा प्रथम कर्तव्य है। पूजा के अष्टप्रकारी सामान्य कर्म के अतिरिक्त अन्य विविध रूप भी होते हैं। इनमें आरती, धूपज्वलन, विविध प्रकार के हवन और विधान आदि समाहित हैं। इन तीनों ही उपक्रमों में अग्नि और उसकी ज्वाला तथा उससे उत्पन्न उष्ण धूम्र का आकाश में प्रसरण और विसरण होता है। हवन में विभिन्न प्रकार की लकड़ियों एवं द्रव्यों का ज्वलन किया जाता है। इनकी ज्वाला से उत्पन्न धूम्र में विशिष्ट घटक होते हैं जिनसे वायुमंडल में विद्यमान बेक्टीरिया, फंजाई तथा अन्य उड़नशील जीवाणुओं तथा जीवों का नाश होता है। इसके साथ ही, यह भी माना जाता है कि इस ज्वलन से उत्पन्न द्रव्यों की वाष्पों से (हानिकारक जीवाणुओं एवं द्रव्यों के नाशन के कारण) वायुमंडल एवं पर्यावरण स्वच्छ और हितकारी बनता है। फलतः जैनों में इन प्रक्रियाओं के प्रति आर्कषण स्वाभाविक है, क्योंकिः हवन-विधान आदि की संख्या ३ वातावरण-स्वच्छता/ स्वस्थता इसी आधार पर अन्य धर्मी यज्ञादि की उपयोगिता भी प्रसारित करते हैं। तथापि, अब अहिंसा की सूक्ष्म अवधारणा भी सामने आने लगी है। फलतः इन उपक्रमों से होने वाली हिंसा से बचने के लिये आरती या दीप प्रज्वलन में विद्युत-बल्बों का उपयोग होने लगा है। सुगन्ध-दशमी के दिन धूप खेने की प्रक्रिया भी अनेक स्थानों पर बन्द हो रही है। इसके साथ ही, हवन आदि में भी हिंसा के अल्पीकरण के उपाय अपनाये जा रहे हैं। फिर भी, इन प्रक्रियाओं में अग्निकायिक के अतिरिक्त छोटे-बड़े जीवाणुओं की हिंसा तो होती ही है। इसका अनुमानित परिकलन भी किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- आरती लगभग आधे घंटे की होती है, यह एक-ज्वाली भी होती है, अनेक -ज्वाली भी होती है। इसमें अनेक लोग भी भाग लेते हैं। आजकल तो विशिष्ट अवसरों पर साधुओं की भी आरती उतारी जाती है। सामान्यतः, एक आरती के दीप की ज्वाला 3-4 सेमी. ऊंची होती है । इसमें जलने वाले ईधन (तेल) का धुवां सामान्यतः 30-40 सेमी. की ऊंचाई तक जाता है । ज्वाला की चौड़ाई 0.5 सेमी. से भी कम होती है। अतः ज्वाला का क्षेत्रफल औसतन 35x0.5 %D 17.55 वर्ग सेमी. होगा । इतने वायुमंडल में 10° तक जीवाणु रह सकते हैं। इनमें 101 x 103 = 1010 यूनिट हिंसा सम्भावित है। इसके विपर्यास में, धूम-ज्वलन में किंचित् अधिक हिंसा सम्भावित है एवं हवन की ज्वाला से तो 72 -1 घंटे के हवन में कम से कम 10% x10 यूनिट हिंसा होती है। सामान्यतः हवन के समय मंत्रपाठ, स्वाहापाठ भी किया जाता है जिसका वायुकायिक जीव-विराधना के साथ मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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