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________________ (372) : नंदनवन चरण होते हैं। यदि हम विभिन्न चरणों के लिये, स्वैच्छिकतः एक का मान मानलें, तो हिंसा के विविध चरणों को परिमाणात्मक रूप में व्यक्त कर कुछ निष्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं। इस विवरण के आधार पर प्रत्येक चरण के मान ऊपर चरणों के सामने दिये गये हैं। इस आधार पर हम विभिन्न प्रकार से की जाने वाली हिंसाओं के मान भी ज्ञात कर सकते हैं (सारणी 2)। सारणी 2 : विभिन्न प्रकार की हिंसाओं के मान 1. मन-कृत हिंसा 2x3 = 66. काय-कारित हिंसा 1x4 = 4 2. वचन-कृत हिंसा 1x3 33 7. मन-अनुमोदित हिंसा 2x5 = 10 3. काय-कृत हिंसा 1x3 = 38. वचन अनुमोदित 1x5 =5 हिंसा मन-कारित 2x4 = 8 9. काय-अनुमोदित 1x5=5 हिंसा हिंसा वचन-कारित 1x4 34 हिंसा इसी प्रकार, 49 भंगों के रूप में की जाने वाली हिंसा का मान ज्ञात किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, जटिलतम हिंसा का मान : (मन-वचन-काय) x (कृत-कारित-अनुमोदित) = (2x1x1)x (3x4x5) = 120 यह एक कालचरण का मान है। तीनों कालों के लिये, यह मान 120 x 3 = 360 होगा। इस प्रकार, एक व्यक्ति के द्वारा की गई, कराई गई तथा अनुमोदित हिंसा का एक-कालिक अधिकतम मान 120 यूनिट होगा। लेकिन जब किसी प्रक्रिया में एकाधिक व्यक्ति समाहित होते हैं, (जैसे अनेक गार्हस्थिक/आजीविका या धार्मिक क्रियायें), तो उनमें हिंसा का मान ज्ञात किया जा सकता है। यही नहीं, हिंसा का मान हिंसित जीवों की जीवन-इकाइयों या चैतन्य-स्तरों पर भी आधारित होता है। प्रोफेसर मरडिया ने विभिन्न कोटि के जीवों के लिये जीवन-यूनिटों की स्वैच्छिक धारणा (सारणी 3) प्रस्तुत की है। इसके अनुसार, अजीव पदार्थों की जीवन-इकाई शून्य होती है और सिद्ध जीवों की चेतना का सारणी 3 : विभिन्न जीवों की चेतना का स्तर 1. अजीव पदार्थों की जीवन-इकाई एकेन्द्रिय अतिसूक्ष्म जीवों की जीवन-इकाई 3. पौधों की जीवन-इकाई 4. कंदमूलों की जीवन इकाई 5. दो इंद्रिय जीव 2 तीन इंद्रिय जीव 6. चार इंद्रिय जीव 4 पंचेंद्रिय तिर्यंच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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