SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-विद्याओं में शोध (1983-1993) : एक सर्वेक्षण : (285) भी एक शोध हुआ है। शाकाहार ने भी इस दशक में आकर्षण पाया है। आचार सम्बन्धी कुछ शोध आगम-साहित्य के अन्तर्गत भी हुए हैं। अहिंसा ने इस दशक में नगण्य स्थान पाया है। कुछ धार्मिक सिद्धान्तों के मनोवैज्ञानिक पक्षों पर भी अध्ययन हुये हैं। इन शोधों की विषय-वस्तु से ऐसा लगता है कि यह भूतकालीन दृष्टि को ही अधिक प्रतिबिम्बित करती है, इसमें वर्तमान वैज्ञानिकता एवं तुलनात्मकता कम है। आहार-विज्ञान धार्मिकता का एक अभिन्न अंग है, इस पर स्वतंत्र शोध नहीं हुआ है। अभक्ष्य शास्त्र का भी शास्त्रीय एवं आधुनिक समीक्षण अपेक्षित है। नव-विकसित एवं विदेशों में प्रचलित खाद्यों की कोटि का निर्धारण भी एक अच्छा विषय है। अन्य पद्धतियों की आचार संहिताओं का भी तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है। क्रियाकाण्ड भी शोध से निर्लिप्त रहे हैं। ये मनोवैज्ञानिकतः धार्मिकता के प्रेरक हैं। यह माना जाता है कि उत्सव-प्रेम ने ही उत्तरवर्ती काल में धर्म के अभिन्न अंगों के रूप में स्थान पाया। कला, पुरातत्त्व और इतिहास इस क्षेत्र की शोध में पर्याप्त वृद्धि हुई लगती है। इसके अन्तर्गत मूर्तिकला, प्रतिमा विज्ञान, अभिलेख अध्ययन, खजुराहो एवं श्रवणबेलगोला, पाण्डुलिपि कला, वख्शाली पाण्डुलिपि पर शोध कार्य हुये हैं। जैन साध्वियों एवं प्रमुख जैन महिलाओं पर अच्छी जानकारी मिली है। विभिन्न प्रदेशों में जैन धर्म पर काफी शोध कार्य हुए हैं। सम्भवतः केरल अभी छूटा हुआ-सा है। भट्टारक सम्प्रदाय पर एक ही काम हुआ है। इस पर और अधिक शोध की आवश्यकता है। वस्तुतः जैन इतिहास, कला और पुरातत्त्व का क्षेत्र अत्यन्त विशाल है। इस पर अच्छे शोधों की आवश्यकता है। ऐतिहासिक आचार्यों एवं राजतंत्रों पर भी शोध की आवश्यकता है। यही नहीं, दिगम्बर एवं श्वेताम्बर साधुओं द्वारा राज्याश्रय या अन्य माध्यमों से जैन धर्म संवर्धन में योगदान विषय पर शोध अतीव आवश्यक है। डॉ. ए. चटर्जी ने अपने अंग्रेजी में लिखित जैन इतिहास में अनेक ऐसे साधुओं का उल्लेख किया है। यह विषय किंचित् व्यय एवं यात्रा-साध्य है। पर यह जैन धर्म की भूतकालीन प्रभावकता प्रकाशित करेगा, साथ ही वर्तमान प्रवृत्तियों को भूतकाल से जोड़ेगा एवं उन्हें प्रेरित करेगा। आधुनिक विषय ___ आधुनिक विषय के अन्तर्गत वर्तमान में मानविकी संकाय के अनेक विषय आते हैं। इनसे सम्बन्धित शोधों में 1983 की तुलना में पर्याप्त (लगभग 200 प्रतिशत) वृद्धि हुई है। इनकी संख्या 18 से 41 हो गई है। इनमें राजनीति और समाजशास्त्र से सम्बन्धित शोध अधिक हैं। अन्य में वृद्धि कम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy