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________________ जैन-विद्याओं में शोध (1983-1993) : एक सर्वेक्षण : (283) अन्तर्गत अनेक चरित्र काव्य, चंपूकाव्य, संदेश काव्य, प्रबन्ध काव्य, भक्ति काव्य, रूपक एवं शतक साहित्य, संत और रीति काव्य, विलास एवं पूजा तथा स्तोत्र साहित्य, जैन उपन्यास तथा प्रेमाख्यान काव्य और कथाकोश, पुराण एवं बारहमासा पर इस दशक में अच्छे शोध हुए हैं। इन शोधों में बीसवीं सदी के जयोदय (2) मूकमाटी (3) तथा अन्य काव्य भी समाहित हुए हैं। वीरेन्द्र जैन के उपन्यास भी शोध के विषय बने हैं। जिनवाणी, 1987 के सर्वेक्षण में जो काव्य ग्रन्थ छूट गये थे, उनमें से प्रत्येक पर एकाधिक शोध-निबन्ध प्रस्तुत किये गये हैं। इनमें सर्वाधिक संदेश काव्यों (प्रायः 10) पर शोध हुए हैं। हम्मीर काव्य पर ही 3 शोध हुए हैं। द्विसंधान महाकाव्य ने भी पांच शोधकों का ध्यान आकृष्ट किया है। चंपूकाव्यों पर भी शोधकों का ध्यान गया है। प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी के विविध कोटि के साहित्य पर पर्याप्त निबन्ध प्रस्तुत हुये हैं। तमिल- के तीनों काव्य ग्रन्थों पर भी अनेक शोधकों ने काम किया है। रामकथा सम्बन्धी शोधों में 'पउमचरियं के साथ अनेक तुलनात्मक अध्ययन हुये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह क्षेत्र अब संतृप्त हो गया है। पर अन्य देशों की तथा दक्षिण की रामायणों के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है। पुराण में भी अभी पर्याप्त शोध की आवश्यकता है। पिछले अनेक वर्षों (उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ से) में अनेक विदेशी भाषाओं में भी जैन साहित्य एवं शोध-ग्रन्थ प्रकाश में आये हैं। इस सम्बन्ध में लेख तो अनेक आये हैं, पर उनकी शोधात्मक समीक्षा अभी अपेक्षित है। एतदर्थ शोध-सन्दर्भ में लगभग 50 शोधों की जानकारी है। यह अपूर्ण तो है, पर यह निरन्तर वर्धमान है। इसपर विश्लेषणात्मक शोध अपेक्षित है। एतदर्थ विदेशी भाषा में उपलब्ध जैन साहित्य और शोध ग्रन्थों के एकत्र संकलन की आवश्यकता है। यह काम कौन-सी संस्था करेगी, यह विचारणीय है। व्यक्तित्व और कृतित्व के अन्तर्गत हरिभद्र, उमास्वाति, विद्यानन्द, समयसुन्दर एवं हेमचन्द्र पर एकाधिक शोध-प्रबन्ध आये हैं। इसके अतिरिक्त, इन पर इनकी स्वतंत्र कृतियों से सम्बन्धित अनेक शोधों में भी प्रकाश डाला गया है। इनमें कुन्दकुन्द, उमास्वाति एवं समन्तभद्र प्रमुख हैं। इस कोटि में लगभग एक दर्जन अन्य प्राचीन कवियों पर भी शोध हुई है। बीसवीं सदी के गणाधिपति तुलसी, युवाचार्य महाप्रज्ञ (अब आचार्य) एवं आचार्य विद्यासागर जी भी अनेक शोधों में समाहित हुये हैं। जैन व्याकरण एवं भाषा विज्ञान के अन्तर्गत अलंकार ग्रन्थों, काव्यानुशासन (5), जैनेन्द्र व्याकरण, वररुचि, बिंब योजना, छंद योजना एवं भाषा कोषों पर काम हुआ है। अभी इनमें शाकटायन एवं कातंत्र व्याकरण सम्मिलित नहीं हुये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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