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जौ तुम ईसहि अछेरा मानौ
तौ भी नाहि बनै मनि आनौ ।।६२ ।। कालअनंत अनंत गए तै।
एक एक ही युगल गहेतै सब हरिखेत भूमि का खाली
व्है कै मिटै जुगल परनाली ।।६३।।
दोहरासब गणती के युगल है घटे बढे नहीं कोइ ।
मरण काल ही जुगल कै आइ युगलीया
होइ ।।६४।। राखत चउदह उपकरण मुनि कौ नाही दोष ।
परिग्रह त्यागदसा विषै करिहि परिग्रह
पोष । ६५।। जहिं परमाणु समान नहि परिग्रह ग्रह को संच।
तहां कही क्यों करि बनै वस्त्रादिक परपंच ।।६६ ।
सवैया इकतीसाकाल पाय मैले होइ आसा होइ धोवन की
धोयें नासै संसय में और भविस तारे
नास भये मांगने को त्रास होइ नासने के
डरतें सुध्यान विषै थिरता विसारे है।। देह दुति मंडन है ब्रहमचर्य खंडन है
जिनलिंग लंडन है तातै पट डारै है। संवर धरनहार अंबर से अविकार
होइ को निरंबर दिगंबर ही धारै है।।६७।।
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