SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समत्व अनासक्ति या वीतरागता में, बुद्धि का समत्व अनाग्रह या अनेकांत में और आचरण का समत्व अहिंसा एवं अपरिगह में निहित है । 'अनासक्ति, अनेकान्त, अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धान्त ही जन दर्शन में समत्व योग की साधना के चार आधार स्तम्भ हैं। वृत्ति में अनासक्ति, विचार में अनेकान्त , वैयक्तिक जीवन में असंगह और सामाजिक जीवन में अहिंसा यही समत्व योग की साधना है । यही वीतराग जीवन दृष्टि है । जिस, निष्ठा सूबा है: - सभी भात्माएं स्मान है ( व्याख्या प्रज्ञप्ति 7:8) और जीवन का नियम संघर्ष नहीं, वरन् परस्पर सहकार है (परत्परोपनाहो जीवानाम्- तत्त्वार्थ) । वस्तत : समत्व योग जीवन के विभिन्न पक्षों में एक ऐसा सांग तुलन है जिसमें न केवल वैयक्तिक जीवनके संघर्ष समाप्त होते हैं वरन् सामाजिक जीवनसंघर्ष भी समाप्त हो जाते है । मनुष्य का अपने परिवेश के साथ जो संघर्ष है उसके कारण रूप में जैविक आवश्यक्ताओं की पूर्ति इतनी प्रमख नहीं है जिनी कि । व्यक्ति की भोगासक्ति । संघर्ष की तीता, आरावित की तीमाा के साथ बढ़ती जाती है । प्राकृति के जीवन जीना न तो इतना जटिल है और न इतना संघर्ष पूर्ण ही । व्यक्ति का आन्तरिक संघर्ष जो उसकी विविध आकांक्षाओं और वासनाओं के कारण होता है उसके पीछे भी व्यक्ति की तृष्णा या आसक्ति ही प्रमुख तथ्य है। इसी प्रकार वैचारिक जगत् का सारा संघर्ष आग्रह, पक्ष या दृष्टि के कारण है वाद, पर या दृष्टि* एक ओर सत्य को सीमित करती है दूसरी ओर "आग्रह' सत्य के अनन्त पहलुओं को आकृत करता है । भोगासक्ति स्वार्थ की संकीर्णता को जन्म दी है और आवृत्ति वैचारिक संकीर्णता को प्रस्त करती है । संकीर्णता चाहे वह हितों की हो या विचारों की, संघ को जन्म भी है । समग सामाजिक संघर्ष के मूल में यही हितों की या विचारों की संकीर्णता काम कर रही है । समत्वयोग की साधना इन वैयक्तिक एवं सामाजिक संघर्षों के निवारण के लिए आवश्यक है । वह व्यक्ति के जीवन के विविध पक्षों में तथा सामाजिक जीवन में एक सांग सन्तुलन स्थापित करती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006502
Book TitleKeynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahadeolal Saraogi
PublisherMahadeolal Saraogi
Publication Year
Total Pages72
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy