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________________ ____ तत्त्वार्थस्त्रे मित्याकांक्षायामाह-'जीवा अजीवा आसवाहिगरण' इति । जीया अजीवाभाववाधिकरणं भवति, तथाऽधिक्रियन्तेऽस्मिन्नर्था इत्यधिकरणं द्रव्य मित्युच्यते, तच्च द्रव्यं षविघम् धर्मास्तिकायाऽधर्मास्तिकायाऽऽकाशास्तिकायपुद्गलास्तिकाय-जीवास्तिकाय कालभेदात् । तत्र यद् द्रव्य माश्रित्यास्रव उत्पयते, तह द्रव्यमधिरण मुच्यते, यद्यपि-सर्वोऽपि शुभाशुभलक्षण आस्रव आत्मनो जीवस्यैव संजायते-तथापि-य आत्रवो मुख्यभूतेन जीवेनोत्पद्यते, तस्यास्त्रयस्याऽधिकरण माश्रयो जीव द्रव्यं भवति । यः पुनराखचोऽजीव द्रव्य माश्रित्य जीवस्यो सयते, तस्यास्रवस्याधिकरण माश्रयोऽजीव द्रव्य मुच्यते, तथाच-ते खलु जीया अजीवा वा तीब्रमन्दादिभावेन परिणममानस्यात्मनो विषयमुपेताः सन्त: पूर्वोक्तानां द्विचत्वारिंशत्साम्परायिककर्मास्त्रवविशेषाणां हेतवो भवन्तीति जीवानां जीव और अजीच आस्रव के अधिकरण हैं। जिस में अर्थ अधिकृत किये जाएं वह द्रव्य अधिकरण कहलाता है द्रव्य के छह भेद हैं-(१) धर्मास्तिकाय (२) अधर्मास्तिकाय (३) आकाशस्तिकाय (१) पुद्गलास्तिकाय (५) जीवास्तिकाय और (६) काल । इनमें से जिस द्रव्य को आश्रित करके आस्रव की उत्पत्ति होती है, वह द्रव्य अधिकरण कहलाता है। यद्यपि सभी प्रकार का आस्रव, चाहे वह शुभ हो या अशुभ, जीव को ही उत्पन्न होता है, किन्तु जो आस्रव जीव की मुख्यता से उत्पन्न होता है, उसका अधिकरण जीव कहलाता है और जो आस्रव अजीव द्रव्य की मुख्यता से उत्पन्न होता है उसका अधिकरण अजीव द्रव्य कहलाता है। तीव्र या मन्द आदि भावों के रूप में परिणत होनेवाले आत्मा के विषय बनने वाले वे जीव या अजीव पूर्वोक्त बयालीस प्रकार के साम्परायिक आस्रव के અધિકરણ શું છે અને તેના કેટલાં ભેદ છે? આ પ્રકારની જિજ્ઞાસા થવાથી કહીએ છીએ– જીવ અને અજીવ આસવના અધિકારણ છે. જેમાં અર્થ અધિકૃત ४२१मा मात द्रव्य अधि:२९५ ४३पाय छे. द्रव्यना ७ मे छे-(१) या. स्तिय (२) अपमास्तिय (3) माशास्तिाय (४) ४ (५) स्तिय અને (૬) પુદ્ગલ સ્તિકાય આમાંથી જે દ્રવ્યને આશ્રિત કરીને આસ્રવની ઉત્પત્તિ થાય છે, તે દ્રવ્ય અધિકરણ કહેવાય છે. જો કે બધાં પ્રકારને આસવ પછી ભલે તે શુભ હોય અથવા અશુભ જીવને જ ઉત્પન્ન થાય છે, પરંતુ જે અ સ્ત્રવ જીવની મુખ્યતાથી ઉત્પન્ન થાય છે તેનું અધિકરણ છવદ્રવ્ય કહેવાય છે. તીવ્ર અગર મન્દ આદિ ભાવના રૂપમાં પરિણત થનારા આત્માના श्री तत्वार्थ सूत्र : २
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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