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दीपिका-नियुक्ति टीका अ.८ सू.३३ कषायध्युत्सर्गतपसः निरूपणम् ७०३ पण्णत्ते, तं जहा कसायविउस्सग्गे? संसारविउस्सग्गे२ कम्मविउस्सग्गे' इति। अथ कोऽसौ भावव्युन्सर्गः ? भावव्युत्सर्ग त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-कषायव्युत्सर्ग १ संसारव्युत्सर्गः २ कर्मव्युत्सर्गः २ इति ॥३२।।
मूलम्-कसायविउस्सरगतवे चउविहे, कोहकसायाइ विउस्सग भेयओ ॥३३॥
छाया-कषायव्यु सर्गतपश्चतुर्विध, क्रोधकषायादि व्युन्सर्गभेदतः ॥३३॥
तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे-कषायसंसारकर्मभेदेन त्रिविधं भावव्युत्सर्गतपः प्ररूपितम, सम्पति-तेषु कषायव्युत्सर्गतपश्चातुर्विध्येन प्ररूपयितुमाह-कसायविउस्सग्गतवे' इत्यादि । कषायव्युत्सर्गतः खलु चतुर्विधं भवति, तद्यथा-क्रोधकषायादि भेदतः। तथा च-क्रोधकषायव्युत्सर्गतः १ मानकषायव्युत्सर्गतपः
प्रश्न-भावव्युत्सर्ग के कितने भेद है ?
उत्तर-भावव्युत्सर्ग के तीन भेद है-(१) कषायव्युत्सर्ग (१) संसार व्युत्सर्ग और (३) कर्मव्युत्सर्ग ॥३२॥
'कसायविउस्सग्ग तवे' इत्यादि
सूत्रार्थ-क्रोध कषायव्युत्सर्ग आदि के भेद से कषायव्युत्सर्ग तप के चार भेद हैं ॥३३॥
तत्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में भावव्युत्सर्ग तप के कषाय संसार और कर्म के भेद से तीन भेदों की प्ररूपणा की गई थी अब उनमें से कषायव्युत्सर्ग के चार भेदों की व्याख्या करते हैं
कषाय व्युत्सर्ग तप चार प्रकार का है, यथा-(१) क्रोध कषायव्यु: त्सर्ग (२) मानकषाय व्युत्सर्ग (३) मायाकषाय व्युत्सर्ग और (४) लोभ
प्रश्न--ला०युत्समन Bा मे छ ?
उत्तर--भाव्युत्सम ना १ ले छे-(१) पायव्युत्मा (२) ससार व्युत्सम भने (3) मयुत्सग ॥ ३२ ॥ સૂવાથ- ક્રોધકષાયવ્યત્સર્ગ આદિના ભેદથી કષાયવ્યુત્સતપના ચાર ભેદ છે ૩૩
તત્વાર્થદીપિકા---પૂર્વસૂત્રમાં ભાવવ્યુત્સર્ગતપના કષાય સંસાર અને કર્મના ભેદથી ત્રણ ભેદની પ્રરૂપણ કરવામાં આવી. હવે તે પૈકી કષાયબ્રુત્સર્ગના ચાર ભેદની વ્યાખ્યા કરીએ છીએ
पायव्युत्सम त५ यार ना छे. भ-(१) ओघायव्युत्स। (२) માનકષાયવ્યત્સર્ગ (૩) માયાકષાયબ્સર્ગ અને (૪) લેભકષાયબ્રુત્સર્ગ. તાત્પર્ય એ છે કે કષાયબ્રુત્સર્ગ તપના ચાર ભેદ હોય છે. ૩૩
श्री तत्वार्थ सूत्र : २