SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - तत्त्वार्यसूले मूलम्-वेयावच्चे दसविहे, आयरिय उवज्झाय-थेर-तवस्सि-सेह-गिलाणकुलगणसंघ-साहम्मिय भेयओ॥६५॥ छाया-'वैयावृत्त्यं दशविधम्, आचार्यो-पाध्याय-स्थविर-तपस्वि-शैक्षग्लान कुल-गण-संघ-साधर्मिकभेदतः ॥६५॥ तस्वार्थदीपिका-पूर्व तावद् आभ्यन्तरतपसः प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यादिभेदेन षविधस्य प्रतिपादितत्वेन तत्र-क्रमशः प्रायश्चित्तस्य दशभेदानामालोचन-मतिक्रमणादीनां विनयस्य च सप्तभेदानां ज्ञान-दर्शनचारित्रा. दिविनयानां प्ररूपणं कृतम्, सम्मति-क्रममाप्तस्य वेयावृत्त्यरूपतृतीयाभ्यन्तरतपसो दशभेदानाम् आचार्यो-पाध्यायादि वैयावृत्त्यानां प्ररूपणं कर्तुमाह-वैयावच्चे दसविहे' इत्यादि । वैयावृत्त्यम् सूत्रोक्तविधिना व्यावर्तते स्मेतिव्यावृत्तः निर्जरालक्षण शुमव्यापारवान् तस्य भावः-कर्म वा 'औपपातिक सूत्र की पीयूषवर्षिणी' टीका में, तीसवें सूत्र की व्याख्या में (पृ-२५७-२७२-पर) देखना चाहिए ॥सूत्र ६४॥ 'वेयावच्चे दसविहे' इत्यादि ॥ सू० ६५॥ सूत्रार्थ-वैयावृत्य दस प्रकार का है-१ आचार्य २, उपाध्याय ३, स्थविर ४ शेक्ष ५ ग्लान ६ तपस्वी ७ साधर्मिक ८ कुल ९ गण १० संघ के वैयावृत्य के भेद से ॥०॥६५॥ तत्त्वार्थदीपिका-पहले आभ्यन्तर के प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य आदि छह भेद कहे गए थे। उनमें से आलोचन, प्रतिक्रमण आदि दस भेद प्रायश्चित्त के तथा ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय आदि दस भेद विनय के कहे जा चुके है, अब क्रम प्राप्त तीसरे आभ्यन्तर तप वैयावृत्य के आचार्य वैयावृत्य, उपाध्याय वैयावृत्य आदि दस भेदों की प्ररूपणा ઔપપાતિક સૂત્રની પીયૂષવર્ષિણી ટીકામાં, ત્રીસમાં સૂત્રની વ્યાખ્યામાં (पान न. २५७-२७२) ५२ वा मताभ छे. ॥१४॥ सूत्राथ:-वैयावृत्य ४प्रा२नी है-(१) मायाय (२) उपाध्याय (3) स्थविर (४) शेक्ष (५) सान (6) तपस्वी (७) सायमि (८) (6) ગણુ તથા (૧૦) સંઘની વૈયાવૃત્યના ભેદથી. દિપા તવાથદીપિકા પહેલા આભ્યન્તર તપના પ્રાયશ્ચિત્ત, વિનય, Rયાવૃત્ય આદિ છ ભેદ કહેવામાં આવ્યા. તેમાંથી આલેચન, પ્રતિક્રમણ આદિ દશ ભેદ પ્રાયશ્ચિત્તના તથા જ્ઞાનવિનય, દર્શનવિનય, ચારિત્રવિનય આદિ દશ ભેદ વિનયન કહેવામાં આવેલ છે હવે કમપ્રાપ્ત ત્રિીજા આભ્યનૂર તપ વૈયાવૃત્યના આચાર્ય વિનય, ઉપાધ્યાયવિનય આદિ દશ ભેદેની શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૨
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy