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________________ - - - उत्तराध्ययनसूत्रे पुनः-क्रमशः परिपाटया, सुतौ-पुत्रौ अनुनयन्तं-पुत्रौ प्रति विषयसुखप्रदर्शकवचनैः गृहावासरूपं स्वाभिप्राय प्रकाशयन्तम् , च=पुनः धनेन तो निमन्त्रयन्तम्-वशीकर्तुमिच्छन्तमित्यर्थः, तथा च-यथाक्रम कामभोगैश्चैव-चापि, एवकारोऽप्यर्थकः, तो निमन्त्रयन्तम्, अर्थात्-वेदानधोत्य, ब्राह्मणान् भोजयित्वा, भोगान् भुक्त्वा, इत्याधवसरं दर्शयन्तं तं पुरोहितं प्रसमीक्ष्य दृष्ट्वा तौ कुमारको इदं वक्ष्यमाणं वाक्यम् उक्तवन्ताविति शेषः ॥ ११ ॥ बोलनेवाले एवं (सुए अणुणितं-सुतौ अनुनयन्तम् ) पुत्रोंको विषयसुख प्रदर्शक बचनों द्वारा “ घर में ही रहो" इस प्रकार कहकर मनाने वाले तथा (धणेण निमंतयंतं-धनेन निमंत्रयन्तम् ) उनको धनका प्रलोभन दिखाकर अपने वशमें करनेकी भावनावाले, तथा (जहक्कम कामगुणेहिं चेव-यथाक्रमं कामगुणैश्चैव) यथाक्रम कामभोगों द्वारा भी-हे पुत्रो ! वेदों को पढ़ो, ब्राह्मणोको जिमावो, भोगोंको भोगों' इस प्रकार रिझानेवाले उस अपने पिता (पुरोहियं-पुरोहितम् ) पुरोहितको (प्रसमिक्ख-प्रसमीक्ष्य ) देखकर (कुमारगा-तौ कुमारको) उन दोनों कुमारोंने इस प्रकार (वक्कं-वाक्यम् ) वचनोंको कहा___ भावार्थ-पुरोहितसे दीक्षा अंगीकार करनेकी आज्ञा जब दोनों पुत्रोंने मांगी तो उसको बड़ा अधिक दुःख हुआ। पुरोहितने उनको हरतरह समझाया और समझाते २ जब वह एक तरहसे हताश जैसा हो गया तो उसको बड़ाही शोक हुआ। उससे वह संतप्त हो गया। वास्तवमें जिस समय प्राणी शोकाधीन बनकर आकुल व्याकुल होने लगता है भने सुए अणुणित-सुतौ अनुनयन्तम् पुत्रोन विषय सु५ प्रहरी वयनाथी घरमा २।" २॥ प्रमाणे डीने भनाव तया धणेन निमंतयन्तम्धनेन निमन्त्रयन्तम् अने धननु प्रसन मनावीन पोताना शमा ४२वानी लानावा॥ मने जहकम कामगुणेहिं चेव-यथाक्रमं कामगुणश्चव यथाभ भભેગો દ્વારા પણ હે પુત્રે ! વેદને ભણે, બ્રાહ્મણોને જમાડે, ભોગને ભોગ भा प्रमाणे रिाा मे चोताना पिता पुरोहियं-पुरोहितम् पुरोहितने पसमिक्ख-प्रसमीक्ष धन ते कुमारगा-तौ कुमारको से मन्न शुभाशय न्य। Rai वकं-वाक्यम् क्यनी Hai ભાવાર્થ–પુરોહિત પાસે દીક્ષા અંગિકાર કરવાની આજ્ઞા જ્યારે અને પુત્રો એ માગીતો તેને ખૂબજ દુઃખ થયું. પુરોહિતે તેમને સર્વરીતે સમજાવ્યા અને સમજાવતાં સમજાવતાં જ્યારે તેને હતાશા જેવું લાગ્યું એટલે તેને ખૂબજ દુઃખ થયું. વાસ્તવમાં જે સમયે પ્રાણ શોકને આધીન થઈને આકુળ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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