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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ११ गा. २९ मन्दरपर्वतदृष्टाम्तेन बहुश्रुतप्रशंसा ५५७ निस्सृतेत्यर्थः, शीता नाम नदी, नदीनां मध्ये प्रवरा सर्वतः श्रेष्ठा अस्ति । एवं बहुश्रुतोऽपि । बहुश्रुतो हि ज्ञानरूपजलप्रवाहवान् , मोक्षगमनानुकूलानुष्ठानप्रवृत्तत्वान्मुक्तिस्थानरूपसागरगामी, नीलवद्वर्षधरपर्वतवदुचकुलसमुत्पन्नः नदीतुल्यानां साधूनाम् श्रुतज्ञानिनां वा मध्ये शीता नदीवत्प्रवरश्च भवति ॥ २८॥ तथा च मूलम्जहा से नगाण पंवरे सुमहं मंदरे गिरी । नाणोसहिपंजलिए, एवं हवेइ बहुस्सुएं ॥२९॥ 'जहा सा नईण पवरा' इत्यादि । अन्वयार्थ-(जहा-यथा) जैसे (सा-सा) वह प्रसिद्ध (सलिला-सलिला) निरन्तर जल प्रवाहसे परिपूर्ण (सागरंगमा-सागरंगमा) समुद्र गामिनी (नीलवंतप्पवहा-नीलवत्प्रवहा) मेरु पर्वतके उत्तर भागवर्ती नीलवंत वर्षधर पर्वतसे निकली हुई (सीया-शीता)शीता नामकी नदी (नईण पवरा -नदीनां प्रवरा) नदियों में श्रेष्ठ मानी गई है ( एवं-एवम् ) इसी तरह (बहुस्सुए हवइ-बहुश्रुतः भवति) बहुश्रुत भी माने गये हैं। ये बहुश्रुत ज्ञानरूप जलके प्रवाहसे संतत युक्त रहते हैं। मुक्तिमें ले जानेवाले अनुष्ठानमें प्रवृत्तिशील होनेसे मुक्तिरूप सागरकी और जानेवाले होते हैं । नीलवंत वर्षधर पर्वत के समान उच्च कुल में उत्पन्न होने से नीलवत्प्रवह है एवं नदी तुल्य मुनियों के अथवा श्रुतज्ञानियों के बीच में प्रवर होने से ये शाता नदी के समान प्रवर-श्रेष्ठ माने गये हैं ॥ २८ ॥ "जहा सा नईण पवरा"-त्याहि. मन्वयार्थ-जहा-यथा रेम(सलिला-सलिला)नि२'त२०४१ प्रवाईथी परिपू ( सागरंगमा) समुद्र मिनी नीलवंत पवहा-नीलवत्प्रवहा भेरु पतनी उत्तरे मावता नीaa वर्ष धार पर्वतमाथी नीती सीया-शीता शीत नामनी नहीन नईण पवरा-नदीनाँ प्रवरा नदीमामा श्रेष्ठ कामां आवे छे. एवं बहुस्सुए हवइ-एवं बहुश्रुतः भवति ४ प्रभारी मश्रुतने ५५ भानामा આવે છે. તે બહુશ્રુત જ્ઞાન રૂપી જલ પ્રવાહથી સદા યુક્ત રહે છે. મુક્તિ પ્રાપ્ત કરનાર અનુષ્ઠાનેમાં પ્રવૃત્ત રહેનાર તેઓ મુક્તિ રૂપ સાગર તરફ ગતિ કરનારા હોય છે. નીલવંત વર્ષધર પર્વત સમાન ઉચ્ચ કુળમાં ઉત્પન્ન થવાથી નીલવ...વહ છે, અને નદી તુલ્ય મુનિએમાં અથવા શ્રુતજ્ઞાનિઓમાં શ્રેષ્ઠ હોવાથી તેમને શીતા નદી સમાન શ્રેષ્ઠ માનવામાં આવ્યા છે. જે ૨૮ છે ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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