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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे अन्यच्च मूलम्जहाँ से उडुवई चंदें, णक्खंत्तपरिवारिए । पडिपुन्ने पुन्नमांसीए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२५॥ छाया-यथा स उडुपतिश्चन्द्रो, नक्षत्रपरिवारितः। प्रतिपूर्णः पौर्णमास्याम् , एवं भवति बहुश्रुतः ॥ २५ ॥ टीका-'जहा' इत्यादि। यथा स उडुपतिः-उडूनां नक्षत्राणां पतिः चन्द्रो नक्षत्रपरिवारितः नक्षत्रैरश्विनीभरण्यादिभिः परिवारितः पौर्णमास्यां प्रतिपूर्णः सकलकलासमुपेतो भवति । एवं बहुश्रुतो भवति । बहुश्रुतो हि उडुसदृशसाधूनामधिपतिः, नक्षत्रसदृशसच्छिष्य. परिवृतः, सकलकलाकलितत्वात् प्रतिपूर्णश्च भवति ॥ २५ ॥ 'जहा से उडुबई चंदे' इत्यादि। अन्वयार्थ (जहा-यथा) जैसे (उडुबई-उडुपतिः) नक्षत्रोंका अधि पति (चंदे-चंद्रः) चन्द्र (गखत्तपरिवारिए-नक्षत्रपरिवारितः) नक्षत्रोंअश्विनी-भरणी आदि नक्षत्रों के परिवारसे युक्त हुआ (पुण्णमासीए पौर्णमास्याम् ) पूर्णमासी के दिन (पडिपुण्णे हवइ-प्रतिपूर्णः भवति ) समस्त कलाओंसे युक्त हो जाता है, इसी प्रकार (बहुस्सुए हवइ-बहुश्रुतः भवति) बहुश्रुत भी होते है । जैसे-चंद्रमा नक्षत्रों का अधिपति होता है उसी प्रकार नक्षत्र तुल्य साधुजनों का ये बहुश्रुत रूपी चंद्र अधिपति होते हैं। एवं चंद्रमा जैसे नक्षत्रों से परिवृत्त होता है उसी प्रकार यह बहुश्रुत रूपी चंद्र भी शिष्यजनों के परिवार से युक्त रहते है । जैसे चंद्रमा पौर्णमासी के दिन सकल कलाओं से परिपूर्ण हो जाता है उसी " जहा से उडुवई च दे"-त्या. मन्वयार्थ -जहा-यथा रेभ उडुवई-उडुपतिः नक्षत्रानो मधिपति चंदेचन्द्रः यन्द्र णखत्तपरिवारिए-नक्षत्रपरिवारितः नक्षत्र परिवा२-१२०, अश्विनी माह माना परिवारथी युस्त मनीन पुण्णमासीए-पौर्णमास्याम् पूर्णमान हिसे पडिपुण्णे-प्रतिपूर्णः भवति समस्त साथी युत मने छ एवं बहुस्सुए हवइ-एवं बहुश्रुतः भवति ॥ ४॥रे महुश्रुत ५५ शाले छ. म यन्द्रमा નક્ષત્રને અધિપતિ હોય છે તેમ નક્ષત્ર સમાન સાધુઓને અધિપતિ તે બહુશ્રુતરૂપી ચન્દ્ર હોય છે. જેમ ચન્દ્ર નક્ષત્રેથી પરાવૃત હોય છે તેમ બહુશ્રુત પણ શિષ્ય જનોના પરિવારરૂપી નક્ષત્રથી પરાવૃત હોય છે. જેમ પૂનમને દિવસે ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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