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________________ प्रियदर्शिनी टीका. अ०५ गा. ३१ मरणसमयसमाधिवर्णनम् अवसरो नास्तीति । उग्रबुद्धिशिष्यस्य हि कषायानपगमे सकाममरणं न जातम्, तस्मान्मरणकाले कषायमपहाय मनः प्रसन्नं कुर्यात् ॥ ३०॥ विप्रसन्नश्च यत् कुर्यात् तदाहतओ काले अभिप्पए, सड्ढी तालि समंतिए। विणएज्ज लोमहरिसं, भैय देहस्स कंखए ॥३१॥ छाया-ततः काले अभिप्रेते, श्रद्धी तादृशमन्तिके। विनयेत् लोमहर्ष, भेदं देहस्य काङ्क्षत् ॥ ३१ ॥ टीका-'तओ काले' इत्यादि ततः कषायोपशमनानन्तरं काले-मरणकाले अभिप्रेते-संपाप्ते सति श्रदी श्रद्धावान् अन्तिके-गुरूणां समीपे, तादृशंन्मम मरणं भविष्यतीति भयात् समुत्पन्न अनशन धारण करने का यह तुम्हें अवसर नहीं है। इस प्रकार उग्रबुद्धि शिष्य का मरण कषाय के सद्भाव में सकाममरणरूप न होकर अकाममरणरूप हुआ। अतः मोक्षाभिलाषियों का कर्तव्य है कि वे मरणकाल में कषाय का परिहार करके मन को प्रसन्न रखे । कषायरहित मन का होना यही उसकी प्रसन्नता है ॥३०॥ प्रसन्नचित्त प्राणी जो करता है वह सूत्रकार प्रकट करते हैं_ 'तओ काले'-इत्यादि। अन्वयार्थ (तओ-ततः) कपायके उपशम के बाद (काले अभिप्पेए -काले अभिप्रेते ) मरणकाल प्राप्त होने पर (सड्ढी-श्रद्धो) श्रद्धावान साधु (अंतिए-अंतिके) गुरु के समीप (तालिसम्-तादृशम् ) ' मेरा રહ્યો છું કે, અનશન ધારણ કરવાને તારે માટે અવસર નથી. આ પ્રકારે ઉગ્રબુદ્ધિ શિષ્યનું મરણ કષાયના અભાવને કારણે સકામ મરણરૂપ ન થતાં અકામ મરણરૂપ થયું. તેથી મેક્ષના અભિલાષીઓનું એ કર્તવ્ય છે કે, મરણ સમયે કષાયને પરિહાર કરીને મનને પ્રસન્ન રાખે. કષાય રહિત મનનું થવું એ તેની પ્રસન્નતા છે. ૩૦ છે प्रसन्नचित्तप्राय ४२ छ ते सूत्रा२ प्रगट ४२ छ-"तओ काले" त्या मन्वयार्थ-तओ-ततः षायन। म पछी काले अभिपए-काले अभिप्रेते भ२९४ पास था मते सड्ढी-श्रद्धी श्रद्धावान साधु अंतिए-अंतिके शुरुनी सामे तालिसम्-तादशम् “ भाभ२६ थरी " । ४१२ सयथी ५ यदा उ०२४ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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